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(१२५) अतिरोसे पुछत, नणे मंत्रि मोकलीए दूत: नवि माने तो कटकि करो, राजन राजनीत अनुसरो ॥ ७॥ मंत्रि राज विमासी दूत, मोकली मोटो अवधूत; बोलंतो जे मुख बर्बरो, अंसवें उत्तर आपे खरो ॥॥ वाट घाट उद्धंधी करी, पोहतो जिहां वे उहापुरी; सूरो सूरा जस्यो पंडीजे, दूते दीठे राय पंमिर्ज ॥ ए॥ नणे दूत जय नाणे हिये. राज पंड्याथी को नवि बीहे; विमल मंत्रीना आपो तुरी, आवी उलग सारो खरी ॥१७॥ दूत वचने लागो साटको, राज मस्तक व्यो चाटको, जारे कुण. के तारो धणी, दूत जणी किम नाखु हणी ॥११॥ ताहो सामी विमलड राज, ते तो निर्लजने नथी लाज; सूनु सनेपातकि. थयो, कर वासो अगासे रह्यो ॥ ॥ ११ अकर लाख बांभणीउ राज, एकल परामालहि श्राज, साउ सहस जे सुमी मूहा ते लगो अंगारे हुआ ॥१३॥ जनवट ने थलवट में राज, आप अमारी
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