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( १३१ )
॥ ८ ॥ मस्युं महाजन महेता मोटा, सामईये
सबि कोइ हरष अपार; विमल
जमलि को परिवार ॥ ए
राज न दिसे, सात कोडि साह
॥ वस्तु ॥ विमल चलि विमल चलिर्च, सेन घण बेई; रोम नगर पूरव दिसे, जेणे बार सुलतान जित्ता, बंज पि राज बंधी, देश देशना दंड लित्ता; दाप आप सवि आपणी, वरतावी संसार; वेगे विमल वीज, चंद्रावई मकार; चंद्रावई
मकार ॥ १ ॥
|| ढाल || वाजे तिवलडिए । ए राह ॥
के गोरी के सामलीए, सोढ़ावो रे, सोवन पाट, बेसारो के, विमल वधावो रे ॥ १ ॥ माणिक मोती साथीया, सोहावो रे, पहिरो सवि सिपगार के, गेले गार्ड गोरडी, सोहावो रे, बोले मंगल चार के, विमल वधावो रे ॥ १ ॥
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