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( ६ ) थाय, मारे दश मसवाडा मांझ ॥ १० ॥ अंग अघोर नाक वांकरूं, पग बापरा मुख सांकऊं; ऊभी रद्दि जिसि त्राजुई, वनिता वयर काज घर हूई || ११ || पीलुं वदन देह मुंखरं, जाणे रोमरायनुं घमधु राय तणे घर जाइ होय, दासपणुं पण पामे सोय ॥ १२ ॥ वदन माने जोज्यो गुझ, गुह्य सरिखां नयां बुक; जिस्युं नक्र इस्यो आचार, हस्त बाहु क्रम जंघ विचार ॥ १३ ॥ करने माने पायनो रंग, बाहु माने पायनो जंग; हृदय स्थल सरिखो सिगार, सत्व माने पामे परिवार ॥ १४ ॥ श्रति लांबू ने अति कूबरुं, अति जाऊं ने श्रुति शंककुं; यति गोरु यति कालो वान, ए व जग दोजागी मान ॥ १५ ॥ काब पुंठ जिस्यो गज खंध, यति संकोच पद मनो गंध; यति उन्नत ने वृत्ताकार, ब जग शुत्र बोल्यां संसार ॥ १६ ॥ लांबे दांते लाहमी मली, काक स्वरा ने बांबली, हाथ पाय टुंटी पांगली, परण्याची परणी नली ॥ १७ ॥ चोख जंगि
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