________________
( १ ) ब्रह्मा मुखी ब्राह्मण या, बाहू थकी ते क्षत्री हुआ; वैश्य हृदय उत्पति वखाण, प्रगट्या शुद्ध पायथी जाण ॥ ७ ॥ कंदोई का विया कुंभार, माली मर्दनीच्या सूत्रधार, जेंसाईत तंबोली सार, नुमो नाक सुण सोनार ॥ ८ ॥ गांवा बीपा ने लोहार, मोची चर्म करे व्यवहार, ए चिहुं उपर बोल्या सही, पंच जाति ए कारु कही ॥ ७ ॥ जेहनो विवाह जेहशुं मले, तेहनी ज्ञाति तेहमां जले, नीचकर्मि अति नीच कहाय, वर्ण अढार कह्या हिंदू मां ॥ १० ॥ के जिनवर के ईश्वर ध्याय, के ब्रह्मा के गोविंद गाय; वर्ण वखाण्या मारग रह्या, असुर वर्ण ए अलगा कह्या ॥ ११ ॥ नव नारु ने कार पंच, वर्ण चारना जोई प्रपंच एटले मलिया वर्ण अढार, चाले सकल लोक व्यापार ॥ १२ ॥ बौध ( १ ) सांख्य ( २ ) नैयामक (३) नाम, जैन ( ४ ) अने वैशेषक ( ५ ) ताम; जैमनीय ( ६ ) ब द रिसए जोय, मारग धर्म चलाव्या सोय ॥ १३ ॥ व दरिस ए वरते
Jain Educationa International For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org