Book Title: Vijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Author(s): Pushpadanta Jain, Others
Publisher: Akhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti

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Page 12
________________ अर्द्धशताब्दी मनाने हेतु श्री कश्मीरी लाल जी, श्री सिकन्दर लाल जी, श्री राजेन्द्र पाल जी, श्री देवेन्द्र कुमार जी, श्री पुष्पदन्त जी आदि से विचार विमर्श करते हुए अर्द्धशताब्दी की समिति बनाई जाए। अखिल भारतीय गुरु विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति में श्री कश्मीरी लाल जी को प्रधान बनाकर बाकी की समिति का गठन करने के लिए कहा। उत्तरी भारत के प्रत्येक नगर के सदस्य समिति में शामिल किये गये। इस कमेटी ने अखिल भारतीय अर्द्धशताब्दी महासमिति का रूप धारण कर लिया। दूसरे नम्बर में यही अनुसंधान में विजय वल्लभ रथ का भव्यातिभव्य रथ का आयोजन बनाया। जम्मू से कोइम्बट्रर तक रथ का भ्रमण इसी हेतु था। प्रचार-प्रसार अर्द्धशताब्दी की जानकारी के रूप में किया गया। जिसे लोग आज भी याद कर रहे हैं। तत्पश्चात् गुरु वल्लभ जी के द्वारा रचित जिन पूजा, स्तवन, सज्झाए, थुई उसका भी भिन्न-भिन्न शहरों के मण्डलों की व सदस्यों के प्रतियोगिता के रूप में आयोजन सम्पन्न हुआ। वल्लभ गुरु जी के जीवन आधारित भाषण प्रतियोगिता एवं निबन्ध स्पर्धा हुई। गुरुदेव जी 84 वर्ष आयु के उपलक्ष्य में 84 दिन प्रत्येक व्यक्ति जिन पूजा करे। संक्रान्ति एक दिन पूर्व संक्रान्ति भक्त हमारे साथ प्रतिक्रमण एवं सामायिक करते हुए गुरु भक्ति का परिचय दिया और अन्त में तीन या चार दिन का स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी समारोह होने जा रहा है, उसमें जबसे संक्रान्ति श्री वल्लभ गुरु जी द्वारा प्रारम्भ हुई, तब से आज पर्यन्त आते हुए संक्रान्ति गुरु भक्तों का समिति ने सम्मानित करने का निर्णय लिया है। इसके साथ जो कोई भाग्यशाली प्रतियोगिता में सम्मिलित हुआ है, उसका भी योग्य सत्कार किया जाये, ऐसा आयोजन बना है। इसी रूप में 50 वर्ष पूर्व गुरुदेव जी ने हमारे ऊपर जो उपकार किया था, वह आज भक्ति स्वरूप भक्तों का हृदय कमल विकसित हो गया है। यह है अर्द्धशताब्दी की पुर्णाहूति की रूप रेखा। यह सारा कार्य अर्द्धशताब्दी महोत्सव स्मारिका ग्रन्थ तक पहँचते समापन होता है। इस सारे कार्य का अखिल भारतीय स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति को श्रेय जाता है। मेरा आशीर्वाद है, ऐसे ही देव-गुरु-धर्म प्रति निष्ठा रखते हुए आगे बढ़ें, अपना-सबका कल्याण होवे, यही शुभ भावना और मैंने एक वर्ष पूर्व समुदायवर्ती साधु-साध्वी को पत्र से सूचित किया था कि यह हमारा वर्ष वल्लभ गुरु जी की स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी चलेगा। अपने सभी को वर्ष भर विभिन्न प्रकार के आयोजनों द्वारा गुरु भक्ति का आयोजन रूप में गुरुदेव जी की संस्थाओं के ट्रस्टी गणों को जागृत कर संस्था में उन्पता होवे, सूचित कर संघ की शक्ति अनुरूप कार्य करवा कर या गुणानुवाद कर-कर भी शताब्दी का कार्य कर सकते हैं। मैंने प्रत्येक संक्रान्ति पर उद्घोषणा की है कि गुरुदेव जी की अर्द्धशताब्दी कहीं भी मनाएंगे, कोई भी मनाएंगे, मैं अनुमोदना ही करूंगा। इसी भाव से भारतवर्ष के अन्दर कहीं भी उजवणी होती होवे, मेरी अनुमोदना ही है। इति शुभम् ली.जाचार्ययिजमरवाकरवरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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