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अध्यक्ष
कलम
अम्बाला शहर सितम्बर माह 2003 की संक्रान्ति का दिन मेरे लिए बहुत हर्ष देने वाला था, जब गच्छाधिपति जी ने परम पूज्य, परम वन्दनीय, प्रातः स्मरणीय, पंजाब केसरी जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज का 50वां स्वर्गारोहण वर्ष एक महोत्सव के रूप में मनाने के लिए महासमिति के अध्यक्ष पद के लिए मेरा नाम मनोनीत किया। मेरे किसी पुण्य कर्म के उदय से ही प.पू. गुरुदेव का 50वां स्वर्गारोहण दिवस मुझे मनाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। गच्छाधिपति जी के दिशा-निर्देशन में अर्द्धशताब्दी वर्ष को गुरु गुणानुवाद रूप में मनाने के लिए विविध मंगलमय कार्यक्रमों की रूप रेखा तैयार की गई और इन सभी कार्यक्रमों को व्यवस्थित और सुचारू रूप से मनाने के लिए महासमिति का गठन किया गया, जिसका नाम “अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति' रखा गया और विभिन्न पदों पर समाज के विभिन्न श्रेष्ठीवर्य कार्यकर्ताओं को मनोनीत किया गया, जिनमें श्री सिकन्दर लाल जैन एडवोकेट, जो कि एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते हैं और समय-समय पर समाज के विभिन्न कार्यक्रमों में अपना नेतृत्व प्रदान करते रहते हैं, हर प्रकार के सामाजिक एवं धार्मिक कार्य करने में दक्ष हैं, जिन्हें निवर्तमान गच्छाधिपति जी ने 'यात्रावीर' की पदवी से अलंकृत किया है। ऐसे अनथक निःस्वार्थ सेवाभावी श्री सिकन्दर लाल जैन को कार्यकारी अध्यक्ष के पद पर मनोनीत किया गया और इनका साथ देने के लिए महामंत्री श्री राजेन्द्र पाल जैन एवं कोषाध्यक्ष के रूप में श्री देवेन्द्र कुमार जैन को मनोनीत किया गया।
विविध मंगलमय कार्यक्रमों को योजनाबध एवं सुचारू रूप से करने के लिए संरक्षक एवं वशिष्ठ शुभेच्छु महानुभावों के आशीर्वाद से विभिन्न समितियों का गठन किया गया।
(1) उत्सव समिति (2) प्रचार-प्रसार एवं प्रकाशन समिति (3) रथ संचालन समिति (4) संयोजक के रूप में कार्यकर्ता (5) मुख्य सहयोगी (6) सदस्य स्वागत समिति (7) वित्त समिति इन सबका का विवरण 'योजना एवं प्रारूप' नामक पुस्तक में प्रकाशित है।
भगवान महावीर स्वामी निर्वाण के पश्चात उनकी पाट परम्परा पर अनेक प्रतिभा सम्पन्न आचार्य हुए हैं, जिन्होंने अपने जप-तप-संयममय चरित्र के द्वारा अपनी आत्मा का कल्याण किया और समाज के मार्गदर्शक के रूप में प्रस्तुत हुए। जो जीव स्व और पर का कल्याण करते हैं, समाज के कल्याण और उत्थान हेतु कार्य करते हैं, समाज उनके कार्यों को लम्बे समय तक याद रखता है और किये हुए उपकारों के लिए उन महापुरुषों का गुणानुवाद करते हुए गुरु भक्ति के द्वारा श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।
इसी स्व और पर के कल्याण की श्रृंखला में 20वीं सदी में श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाने योग्य है। गुरुवर विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज एक ऐसे संत हुए हैं, जो हर दृष्टिकोण से पूर्ण व्यक्तित्व के धनी थे। सर्व विरति योग को अपनाते हुए उन्होंने अपनी आत्मा का कल्याण किया, वहीं दूसरी ओर जन समाज के उत्थान और कल्याण के लिए अपनी आत्मिक शक्ति का प्रयोग करते हुए सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी मार्गदर्शन किया।
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