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द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव को देखते हुए इन्होंने जैन समाज के उत्थान के लिए अपनी भावना प्रकट करते हुए कहा- "होवे कि न होवे, परन्तु मेरी आत्मा यही चाहती है कि साम्प्रदायिकता दूर होकर जैन समाज, मात्र श्री महावीर स्वामी के झण्डे के नीचे एकत्रित होकर श्री महावीर की जय बोलें तथा जैन शासन की प्रभावना के लिए ऐसी एक “जैन विश्वविद्यालय" नामक संस्था स्थापित होवे। जिससे प्रत्येक जैन शिक्षित हो, धर्म को बाधा न पहुँचे, इस प्रकार राज्याधिकारी में जैनों की वृद्धि होवे। फलस्वरूप सभी जैन शिक्षित होवे और भूख से पीड़ित न रहे। शासन देवता मेरी इन भावनाओं को सफल करें। यही चाहना है।"
____आज भारतवर्ष में जितनी भी जैन शिक्षण संस्थाएँ एवं विद्यालय हैं, वह सब इन्हीं गुरु महाराज की शुभ सद्प्रेरणा एवं आशीर्वाद का परिणाम है। अपने गुरु श्रीमद् विजयानन्द सूरि के वचनों को “मैंने जिन मन्दिरों का निर्माण करवाया है, तुम सरस्वती मन्दिरों का निर्माण करवाना” सार्थक किया। समाज में फैल रही कुरीतियों को रोकने और धर्म प्रचार के लिए कई क्रान्तिकारी परिवर्तन किये।
परमात्मा के धर्म संघ रूपी ज्योति को विजयानन्द सूरि जी महाराज ने अपने ज्ञान बल के द्वारा प्रज्वल्लित रखा, वहीं विजय वल्लभ सूरि जी महाराज ने अपने जप-तप-संयम के द्वारा चहुँ दिशाओं से इसे और उज्ज्वल और प्रकाशमान किया। परमात्मा की प्राप्ति के लिए परमात्म भक्ति के रूप में एक भक्ति लहर पैदा की। आज इनके लिखे हुए 2200 से ज्यादा स्तवन, सज्झाए, पूजाएँ, थुईयां आदि प्रकाशित हो चुके हैं, जो समाज के पास उपलब्ध हैं और समाज इससे भक्ति रस का आनन्द ले रहा है। वर्तमान में श्वेताम्बर मूर्ति पूजक जैन समाज पूरे भारतवर्ष में विशेषकर पंजाब में सुख-समृद्धि से फल फूल रहा है। वह सब इन्हीं महापुरुष के आशीर्वाद के कारण है।
गुरुवर विजय वल्लभ सूरि जी महाराज की यशोगाथा का गुणगान करने के जिस उद्देश्य को लेकर ‘अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति' का गठन किया गया था, समितियों के कार्यकर्ताओं ने अपने पूरे हर्षोल्लास और अनथक परिश्रम के साथ इन कार्यक्रमों के आयोजनों को सफल बनाया।
'विविध मंगल कार्यक्रमों' की लड़ी में गच्छाधिपति जी की भावना अनुरूप विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका का प्रकाशन किया जा रहा है। जिसके लिए विशेष रूप से श्री पुष्पदंत जैन पाटनी, श्री संजीव जैन दुग्गड़ एवं श्री राजेश जैन लिगा बधाई के पात्र हैं। इस स्मारिका में वर्ष भर में गुरुदेव के गुणानुवाद-स्वरूप किये गये कार्यक्रमों की जानकारी दी गई है और इसी के साथ श्रमण-श्रमणीवृंद के द्वारा भेजे गये लेखों एवं निबन्धों में गुरुवर विजय वल्लभ सूरि जी म.सा. के जीवन चरित्र को विभिन्न दृष्टिकोणों से दर्शाया गया है। इन सभी कार्यक्रमों के आयोजनों को सफलता पूर्वक सम्पन्न करने के लिए प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप में जिन्होंने भी सहयोग दिया है, मैं अपनी और महासमिति के पदाधिकारियों की ओर से उनका हार्दिक धन्यवाद प्रगट करता हूं।
सभी कार्यक्रमों का दिनांक 15-16-17 अक्तूबर 2004 को समापन समारोह मनाया जाएगा। यह मात्र प्रारम्भ किये गये कार्यक्रमों को विराम देने के लिए है। इसे गुरु गुणानुवाद की इति श्री न समझें। आज इस समापन समारोह में गुरु चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए ऐसा संकल्प करें कि इस करुणामय महान् गुरु के दिखाये मार्ग पर चलकर इनके वचनों को पूर्ण करें, इसी में हम सब की व जैन समाज की भलाई और कल्याण है।
इसी के साथ कार्यक्रमों के मध्य मेरे से या महासमिति के किसी सदस्य से जानते-अजानते, अवज्ञा, आशातना, अवहेलना हुई हो तो हम मन, वचन, काया से क्षमा प्रार्थी हैं।
- कश्मीरी लाल बरड़
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