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मंगल संदेश
वर्तमान गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म.
श्रीमद् विजय वल्लभ गुरुवर की अर्द्धशताब्दी के उपलक्ष्य में स्मारिका ग्रन्थ तैयार होने जा रहा है। स्मारिका ग्रन्थ हमारे गुरुवर जी के स्वर्गारोहण हुए 50 साल व्यतीत हुए। वल्लभ गुरु जी के समाज ऊपर, हमारे साधु-संस्था पर क्या उपकार किया है ? उसका लेखा-जोखा देखने का सुनहरी सुअवसर आया है। साधू यदि साधूता में रहकर श्रमण संस्था के लिए या श्रावक के उपयोग के लिए जो भी स्व-पर तारक भावना साधुता में होती है, साध्वाचार में जिनाज्ञा धारक होवे, साध्वाचार में अपने शिष्य-प्रशिष्य में भी आचार-संहिता का यथार्थ पालन करे व करावे। ऐसे हमारे चरित्रनायक की स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी का ग्रन्थ में दो शब्द :
"2002 का चातुर्मास पंजाब की पुण्यधरा शिरोमणी संघ लुधियाना में मेरा चातुर्मास हुआ। पर्युषण पर्व के पश्चात् दरेसी स्कूल में धार्मिक पाठशाला के आयोजन में पंजाब के गणमान्य प्रसिद्ध उद्योगपति श्री जवाहर लाल जी ओसवाल से बात हुई। आगामी एक वर्ष
पूर्व परम पूज्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. की स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष आ रहा है। उसकी उजवणी अच्छी तरह से होनी चाहिए। श्री जवाहर लाल जी ओसवाल ने कहा कि गुरुदेव आप जैसे फरमाते हो, वैसे ही स्वर्णशताब्दी का आयोजन बनेगा। बस लुधियाना से ही हमारी विचारधारा चल पड़ी। सन 2003 का चातुर्मास अम्बाला शहर में हुआ। प्रवेश के पश्चात् अर्द्धशताब्दी की रूप रेखा बताते हुए ट्रस्टीगण को सूचित किया। अम्बाला शहर के प्रधान श्रीसंघ श्री कीर्ति प्रसाद जी आदि ट्रस्टी मण्डल बात को स्वीकार करते हुए शिक्षण संस्था से विचार विमर्श करके मेरी जो भावना थी, अर्द्धशताब्दी के उपलक्ष्य में श्री आत्म-वल्लभ श्रमणोपासक गुरुकुल की स्थापना की भावना बात करते ही ट्रस्टीगण ने मूर्त स्वरूप दे दिया। नक्की हो गया कि गुरुदेव जी के आदेशानुसार जैन कॉलेज के अन्दर यह कार्य आरम्भ किया जाए। आसोज वदि ग्यारस के दिन अर्द्धशताब्दी वर्ष की शुरूआत में प्रथम गुरुकुल की स्थापना विधिवत् हो गई। संक्रान्ति महोत्सव पर
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