Book Title: Vidaai ki Bela
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 14
________________ विदाई की बेला/३ जोर-जोर से बेझिझक होकर दिल खोलकर अपने-अपने दुख-दर्द की एवं दुनियादारी की बातें कर रहे हैं। इस बीच मुझे अनेक बार ऐसा विकल्प आया कि - 'मैं आप लोगों से मिलँ और आपके संबंध में मेरे मन में सागर की लहरों की तरह हिलोरें ले रहे अपने विचारों को आपसे कहूँ', पर आपके द्वारा दोनों ही दिन कोई न कोई ऐसा प्रसंग छेड़ दिया गया है कि उसी में समय पूरा हो गया। वैसे आपकी बातें भी कुछ ऐसी चित्ताकर्षक होती कि मैं भी उन्हें सुनने का लोभ संवरण नहीं कर पाता। इसके अतिरिक्त यह भी विचार आता कि - “महाकवि कालिदास की नीति के अनुसार, 'दो जनों की बातों में तीसरे को बोलना भी तो उचित नहीं है', यह सोचकर भी मैं आपके पास नहीं पहुंच पाया।" ___मैंने आगे कहा - "मुझे आपकी बातों से कुछ ऐसा आभास हो रहा कि आप अपने पारिवारिक वातावरण से कुछ त्रस्त हैं, परेशान हैं। बुढ़ापे में अपने आप को असहाय-सा महसूस करते हैं। आप अपने जीवन से निराश हो चुके हैं; तंग आ चुके हैं; इस कारण मुझे आशंका होती थी कि कहीं ऐसा न हो कि इन सब कारणों से आप लोग कोई अनर्थ कर बैठें, आत्मघात करलें।" बस, इसी संबंध में मैं आप लोगों से कुछ कहना चाहता था, पर एक तो मुझे अवसर ही नहीं मिला, दूसरे मैं इस असमंजस में था कि - “किसी को बिना माँगे सलाह देना भी चाहिए या नहीं; क्योंकि लोक नीति में इसे मूर्खता ही माना जाता है न!" और अपरिचितों को सलाह देना तो और भी अनुचित है, नीतिविरुद्ध है। अतः कुछ भी सलाह देने जैसी बात करने के पूर्व कम से कम आपसे एक बार परिचय तो कर लूँ। मैं इसी तलाश में था। चलो, अच्छा हुआ आप ही आ गये।" मुझे खादी के धोती-कुर्ता और टोपी के सादा भेष में देख संभवतः विद्वान समझकर सम्मानपूर्वक शब्दों में सदासुखी ने कहा - "भाईजी! विदाई की बेला/३ आपके विचार तो बहुत ही उत्तम हैं। आप सभी के शुभचिन्तक तो हैं ही, न्याय-नीति का भी पूरा-पूरा ध्यान रखते हैं।" सदासुखी की बात समाप्त होते ही विवेकी ने कहा - "मैं तो आपके बारे में कुछ और ही सोच रहा था?" ___ मैंने कहा - "क्या मैं जान सकता हूँ कि आप वहाँ बैठे-बैठे मेरे बारे में क्या सोचते थे? आप लोगों ने मेरी ओर देखा तो अनेक बार है, निश्चित ही आप लोगों ने मेरे बारे में कोई राय भी अवश्य बनाई होगी।" विवेकी ने कहा - "हाँ मैं तो यह सोच रहा था कि संभवतः आप भी हम जैसे ही घर-परिवार से उपेक्षित, मुसीबत के मारे, बूढ़े बैल की तरह घर से निष्काषित अपने को असहाय अनुभव करने वाले, मौत की प्रतीक्षा कर रहे कोई दुखिया प्राणी हैं। अन्यथा यहाँ परदेश में अकेले आकर प्रतिदिन एकांत में ऐसे उदास-उदास से किसी पहुँचे हुए बैरागी संत की भाँति आँखें बंद करके घंटो नहीं बैठे रहते।" सदासुखी ने विवेकी की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा - "मुझे तो आपको देखकर बार-बार यह विचार आता था कि यह व्यक्ति दीखता तो कोई विद्वान, विचारक या राजनेता है, पर किसी समस्या से परेशान जरूर है। अकेला बैठा-बैठा बोर तो होता ही होगा। कहीं ऐसा तो नहीं कि यह भी परेशानी से बचने के लिए हमारी तरह ही परेशान हो! और परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए किसी कुंआ-बावड़ी की तलाश में हो? कभीकभी परेशानियाँ अच्छे-अच्छे विद्वानों और विवेकियों को भी विचलित कर देती हैं। चलो, चलकर मालूम करते हैं कौन हैं? कहाँ से आया है? कहाँ ठहरा है? यहाँ दिन भर क्या करता है? और बेचारा किस मुसीबत का मारा है? ___ हमें आपके पहनावे से ऐसा लगा - "आदमी तो भला लगता है, अतः हमने विचार किया - "क्यों न इसे अपना साथी बनालें? अपने साथ होने से यह भी अपनी बातचीत व गप-शप में अपना दुःख भूला

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