Book Title: Vidaai ki Bela
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 22
________________ विदाई की बेला/५ फिर सुनहरे दिन लौट आते हैं और सब अपने-अपने राग-रंग में मस्त हो जाते हैं। फिर कौन किसको याद करता है? जो बाद में भी यदा-कदा रोते दिखाई देते हैं, वे भी सब अपने-अपने स्वार्थों को ही याद कर-कर के रोते हैं। कहाँ तक गावें इस स्वार्थी जगत की गाथाओं को? अतः हम संन्यास धारण कर आत्मसाधन द्वारा सम्यक समाधि से अपने जीवन को सुखमय बनाना चाहते हैं। भला यह भी कोई जीवन है? जिसमें संघर्ष ही संघर्ष हों, एक क्षण को भी शांति न मिले । ऐसी कषायाग्नि में जलना अब हमें एक क्षण को भी अभीष्ट नहीं है। अतः आप हमें संन्यास और समाधि का स्वरूप भी समझा दीजिए।" ___ उनकी संन्यास व समाधि लेने की तीव्र भावना को देखकर उनके परिणामों की यथार्थ स्थिति जानने के लिए मैंने कहा - "देखो, धर्म हमें जीवन-संघर्ष से पलायन करना नहीं सिखाता, बल्कि वह पर्याय का सत्य समझकर उसके साथ समतापूर्वक समायोजन करना, समझौता करना सिखाता है।" किसी कवि ने तो ऐसे पलायनवादियों को झकझोरते हुए यहाँ तक कह दिया है : जिनसे घर मांहि कछू न बन्यों, वे बन में जाहि कहा करि हैं? जो घर में, कषायों के कारण उत्पन्न हुई पारिवारिक जीवन की छोटीछोटी प्रतिकूलताओं का धीरज के साथ सामना नहीं कर सकता, वह मुनिजीवन की कठोर साधना कैसे करेगा? तथा प्राकृतिक परीषहों और परकृत उपसर्गों को कैसे सहेगा? जीवन तो संघर्षों का ही दूसरा नाम है। और संघर्षों का जन्म बाहर में नहीं, अन्तर में होता है। तत्त्वज्ञान के अभ्यास से जैसे-जैसे कषायें कृश होंगी, राग-द्वेष की कारणभूत इष्टानिष्ट कल्पनाएँ भी सीमित होगी, संघर्ष भी सीमित होते जायेंगे तथा कषायों का शमन जीवन से पलायन करने से नहीं, सत्य को समझने और उसे स्वीकार करने से होता है। अतः सर्वप्रथम पूरी शक्ति से सत्य को समझने में जुटना होगा। विदाई की बेला/५ इसके लिए सबसे पहले शास्त्राभ्यास के द्वारा हमें तत्त्वनिर्णय करना होगा, ज्ञानस्वभावी आत्मा का निश्चय करना होगा, सच्चे देव-शास्त्रगुरु के यथार्थ स्वरूप को समझना होगा, फिर जो पर की प्रसिद्धि में ही मात्र निमित्त हैं, ऐसी पाँचों इन्द्रियों, मन और इनके विषयों पर से अपनी रुचि को हटाकर आत्म-सम्मख करना होगा, तभी संन्यास एवं समाधि की पात्रता प्राप्त होगी। यहीं से होता है संन्यास एवं समाधि का शुभारंभ । ___ अत: आप लोगों को आज ही नियमित स्वाध्याय करने का संकल्प कर लेना चाहिए । ज्ञान ही सर्व समाधानकारक है, जो केवल स्वाध्याय से ही प्राप्त हो सकता है। जिसे समता से, निष्कषायभाव से जीना नहीं आता उसका मरण समाधिपूर्वक कैसे हो सकता है? नहीं हो सकता; क्योंकि निष्कषायभाव या शांत परिणाम होने का दूसरा नाम ही तो समाधि है। __ अतः जिसे अपने मरण को समाधिपूर्वक सम्पन्न करना है, उसे अपने स्वस्थ जीवनकाल में ही समाधि करनी होगी। समाधि ऐसी कोई संजीवनी घुट्टी नहीं है, जिसे केवल मरते समय पिलाने से काम चल जाय । यह तो आत्मा की साधना है, आराधना है, जीवन जीने की कला है जिसकी जीवन भर साधना की जाती है। ___इसी पवित्र भावना से जब मैंने एक बार समाधि पाठ सुनने की भावना व्यक्त की तो इस अज्ञानी जगत ने उस घटना को किस रूप में लिया - वह भी एक सुनने लायक मनोरंजक किस्सा बनकर रह गया।" सदासुखी और विवेकी दोनों ही मेरे उस किस्से को सुनने का आग्रह करने लगे, किन्तु समय अधिक हो जाने से मैं उन्हें उस दिन वह किस्सा नहीं सुना पाया। अगले दिन सुनाने का आश्वासन देकर मैंने उनसे बिदा ले ली। वे अपने मन में उस किस्से को सुनने की अभिलाषा लिए उस दिन अपने-अपने घर चल दिये। (22)

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