Book Title: Vidaai ki Bela
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 23
________________ आषाढ़ मास का शुक्ल पक्ष था, समुद्र से मानसून उठने लगा था। बादल उमड़-घुमड़ रहे थे, बिजली कड़क रही थी, दो दिन से तो सूर्य के दर्शन भी नहीं हो रहे थे। मेरे प्रवास के छठवें दिन सवेरे से ही घनघोर घटायें छा गईं, मध्यान्ह तक तो उमस रही, पर अपरान्ह होते-होते मूसलाधार वर्षा प्रारंभ हो गई, जो शाम तक थमी ही नहीं। सब ओर जल ही जल दिखाई दे रहा था। छोटे-बड़े नदी-नाले भी उफन रहे थे, सड़कों पर घुटनों पानी था। ऐसी स्थिति में उस दिन सैर-सपाटे को निकलने की तो कोई सोच ही नहीं सकता था, संभव भी नहीं था। बूढ़े-बच्चे - सभी अपने-अपने घरों के छज्जों से, दरवाजों, खिड़कियों एवं झरोखों से झाँक-झाँक कर वर्षा का आनंद ले रहे थे, पर सदासुखी और विवेकी बैचेन थे, वे प्रतीक्षा कर रहे थे कि पानी थोड़ा-सा भी थमे तो वे मेरे निवास स्थान पर आ जावें; क्योंकि मैं उन्हें समयाभाव के कारण कल पूरी बात सुना नहीं सका था । एतदर्थ उनके एक घंटे के अन्दर तीनतीन फोन आ चुके थे, जो उनकी आतुरता के परिचायक थे। ___ज्योंही बरसात थोड़ी-सी थमी नहीं कि वे दोनों मेरे आवास पर आ धमके और आते ही विवेकी बोला - "हम ऐसी बरसात में भीगते हुए केवल आपका वह किस्सा सुनने आये हैं, जो कल कहते-कहते रह गया था। अतः आप अन्य कोई औपचारिकता किए बिना हमें तो सर्वप्रथम वही किस्सा सुनाइए।" उनकी उत्सुकता देख मैंने कहा - "हाँ, हाँ, सुनाते हैं, पहले जरा गरम तो हो लो, भीगते हुए जो आ रहे हो। और कुछ नहीं तो कम से कम एक-एक प्याला गरम-गरम चाय ही पी लो, फिर शान्ति से बैठकर वह प्रसंग भी सुनना। विदाई की बेला/६ सदासुखी बोला - "भाईजी! हमें अभी किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं है, आप तो..." "तुम्हें आवश्यकता नहीं है, यह ठीक है; पर हमारा भी कुछ कर्त्तव्य है या नहीं? अरे भाई! घर पर आये अतिथियों का कुछ न कुछ आतिथ्य तो होना ही चाहिए न?" - मैंने कहा। सदासुखी बोला - "हम अभी चाय-पानी कुछ नहीं पियेंगे, आप अन्य कुछ विकल्प न करें। वैसे भी आप तो स्वयं प्रवासी हैं, परदेशी हैं। जब हम आपके घर आयेंगे, तब हम जी भर कर आपका आतिथ्य स्वीकार करेंगे। अभी तो आप हमारे मेहमान हैं, अतः यदि आप हमारा आमंत्रण स्वीकार कर कल हमारे घर पधारें तो बड़ी कृपा होगी। निश्चय ही आपके सान्निध्य से हमें बहुत लाभ मिलेगा। हमें आपसे बहुत बातें करनी हैं, बहुत-सी शंकाओं का समाधान करना है। ___ मैंने कहा - "अरे भाई! यह तो अपनी भारतीय संस्कृति है, इसका निर्वाह तो होना ही चाहिए न? और तुम घर की बात कहते हो सो भाई! जहाँ ठहरे हैं, वही घर। जलपान के लिए क्या घर? क्या परदेश? क्या परदेश में मैं भोजन नहीं करता या जलपान नहीं करता? भले फूल न हो तो पाँखुड़ी ही सही; पर घर आये अतिथि का सत्कार तो होना ही चाहिए।" ___ आतिथ्य सत्कार की औपचारिकता के बाद मैंने अपनी बात प्रारंभ करते हुए कहा - "बात बीस वर्ष पुरानी है, जब मेरी उम्र कोई सैंतीसअड़तीस वर्ष की रही होगी। उस समय एक बार मुझे ऐसा बुखार आया, जिसके कारण मेरे अंग-अंग में असह्य वेदना हो रही थी, इसलिए मैंने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा - 'तू मुझे कोई ऐसे आध्यात्मिक भजन सुना, कोई ऐसा शान्तिप्रदायक स्तोत्र और वैराग्यप्रेरक काव्यपाठ सुना; जिससे मेरा उपयोग बदले और मुझे पीड़ा चिंतन न हो। वह बेचारी सब (23)

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