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अंधकारमय दिखाई देता है। अतः मेरी सलाह मानो तो तुम अपना शेष जीवन ज्ञान-वैराग्य सहित समतापूर्वक बिताओ । ताकि तुम्हें वर्तमान में भी आकुलताजनित दुःख की अनुभूति न हो और अगला जन्म भी सुधर सके।"
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सेठ ने कहा - "महात्माजी ! हम ज्ञान-वैराग्य क्या जानें? हमसे तो आप यदि दान-पुण्य करने को कहो तो हम लाख दो लाख रुपया खर्च कर सकते हैं, पूजापाठ करा सकते हैं। पर, अब बुढ़ापे में पढ़ने-लिखने और स्वाध्याय करने की शक्ति ही हममें कहाँ ? अब संयम-नियम से रहना भी हमारे वश की बात नहीं है।"
स्त्री- पुत्र कुटुम्ब परिवार के व्यामोह में पड़े सेठ की पात्रता देख महात्माजी ने सर्वप्रथम सेठ को संसार, शरीर और भोगों से अरुचि उत्पन्न कराने के लिए इस स्वार्थी जगत का स्वरूप समझाने का प्रयत्न किया ।
महात्माजी ने कहा - “देखो सेठ! तुम जिन स्त्री-पुत्र, कुटुम्ब - परिवार के मोह - जाल में उलझकर अपना अमूल्य मानव जीवन बर्बाद कर रहे हो, अपने हिताहित को बिल्कुल भूल बैठे हो, अपने भविष्य को अंधकारमय बना रहे हो, वे कोई भी तुम्हें दुःख के दिनों में काम नहीं आयेंगे। यह जगत बड़ा स्वार्थी है। जिन्हें तुम अपना कहते हो, ये सब स्वार्थ के ही सगे हैं। अतः तुम कुटुम्ब परिवार के मोह में पड़कर अब अधिक पाप में न पड़ो। पाप का फल तो तुम्हें अकेले ही भोगना पड़ेगा।"
“महाराज! मैं आप से मुँहजोरी तो नहीं कर सकता, आप जो कहेंगे, मैं आपकी आज्ञा पालन करने की कोशिश करूँगा, पर आपने जो मेरे कुटुम्ब-परिवार पर संदेह प्रगट किया, उन्हें स्वार्थी बताया- इस बात पर मुझे विश्वास नहीं; क्योंकि मुझे अपने परिवार पर पूरा भरोसा है। वे मेरे लिए तो अपने प्राण तक समर्पित करने को हर समय तैयार रहते हैं। भला ऐसे परिवार के बीच में मेरा बुढ़ापा दुःखद कैसे हो सकता है ?
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आपको पता नहीं है, मेरे स्त्री- पुत्र आदि मुझे एक क्षण भी दुःखी नहीं देख सकते। वैसे अगला जन्म तो देखा किसने है? फिर भी मैंने मौके-मौके पर भारी दान-पुण्य करके पूजा-पाठ कराके, तीर्थों के यात्रा संघ निकालकर, मंदिर वगैरह बनवाकर अपने अगले जन्म का भी कुछकुछ इंतजाम कर ही लिया है।"
सेठ की बातें सुनकर महात्माजी मुस्कुराये। उन्होंने कहा - "सेठ! तुम बहुत भोले हो । जब तुम्हें पुनर्जन्म और पुण्य पाप में विश्वास ही नहीं है तो धरम-करम करके यह रिजर्वेशन कहाँ का करा लिया है?
सेठ! अभी तक तुमने पूर्व पुण्योदय से सब ओर से कुटुम्ब परिवार की अनुकूलता ही देखी है। प्रतिकूलता का प्रसंग तो अब प्राप्त हुआ है। तुम अब देखना कि कौन /कितना समर्पण करता है?"
सेठ ने आत्मविश्वास प्रगट करते हुए कहा “मैं आपकी इस बात से सहमत नहीं हूँ, ऐसा कहकर आपने मेरे परिजनों का अपमान किया है।” महात्माजी ने कहा- “देखो सेठ! यह तुम नहीं, तुम्हारा मोह बोल रहा है, अहंकार बोल रहा है। भले ही अभी तुम्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा है, पर कभी न कभी तुम्हें मेरी बात माननी ही होगी।
यदि तुम्हें मेरे निमित्तज्ञान पर जरा भी विश्वास हो तो उसके अनुसार तुम्हें इतना तो मानना ही पड़ेगा कि अब तुम्हारी जिंदगी केवल चंद दिनों की रह गई है । अतः तुम्हारे जो अति आवश्यक काम हैं, उन्हें शीघ्र पूरा कर लो, अन्यथा यहाँ का सब कुछ तो अधूरा छोड़कर ही जाना होगा, अगले जन्मों में भी तुम्हारा अतृप्त आत्मा सुख-शांति प्राप्त नहीं कर सकेगा। अतः तुम्हें यह सब विकल्प तोड़कर अपने कल्याण के मार्ग में लग जाना चाहिए।"
महात्माजी से अपनी मौत की बात सुनकर सेठ की आँखों के आगे अँधेरा छा गया, वह हक्का-बक्का रह गया।
कुछ
परिस्थिति का लाभ उठाते हुए महात्माजी ने सेठ के कान में कहा - सेठ सुनते ही मूर्छित हो मरण तुल्य हो गया।