Book Title: Vidaai ki Bela
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 43
________________ विदाई की बेला/११ ही खोज रहा था। इस कारण उसे इसका समुचित समाधान कहाँ से मिलता? मेरे सामने भी उसने यह समस्या रखी थी; पर उस दिन तो उपयुक्त अवसर न होने से मैं उसका समाधान नहीं कर पाया था, किन्तु एक दिन जब मैं सप्तभयों से भयभीत व्यक्तियों को सम्यग्दृष्टि के समान निर्भय रहने की प्रेरणा दे रहा था, निर्भीक होकर जीने की कला' पर प्रकाश डाल रहा था, तब विवेकी को सामने बैठा देख मुझे उसका वह प्रश्न स्मरण हो आया, जिसमें उसने मृत्यु को महोत्सव मनाने में शंका प्रगट की थी। उस प्रश्न के संदर्भ में मैंने उसे संबोधित करते हुए कहा - "देखो, भाई विवेकी! यह तो मैं भी मानता हूँ कि मनीषियों द्वारा मृत्यु को महोत्सव कह देने मात्र से मृत्युभय से भयभीत यह जगत मृत्यु को महोत्सव मानने वाला नहीं है और जब तक अन्तःकरण से बात स्वीकृत न हो तब तक किसी भी दबाव में आकर तात्त्विक बात को भी शिरोधार्य कर लेने से कोई लाभ नहीं होता। अतः इसके सही समाधान के लिए मैं आगम, युक्ति एवं स्वानुभव से यह बात कह रहा हूँ। आपको यहाँ इतना तो निश्चित ही मानकर चलना चाहिए कि मृत्यु जैसे गंभीर प्रसंग को होली-दिवाली जैसे हर्षोल्लास के साथ मनाये जाने वाले उत्सव की भाँति तो नहीं मनाया जा सकता। इस अर्थ में आगम में मृत्यु को महोत्सव कहा भी नहीं है। मृत्युमहोत्सव की तुलना हम उस बेटी की विदाई से कर सकते हैं, जो योग्य वर के साथ बड़े घर में ब्याही गई हो।" उदाहरण को स्पष्ट करने के लिए मैंने विवेकी से यह पूछा - "बताओ विवेकी! योग्य वर के साथ बड़े घर में ब्याही गई बेटी की विदाई सुखदायी है या दुःखदायी?" विवेकी मेरे इस प्रश्न को सुनकर कुछ कहे बिना मेरी ओर आँखें फाड़-फाड़कर देखता रहा। विदाई की बेला/११ थोड़ी देर तक कुछ उत्तर न मिलने पर मैंने ही बात को आगे बढ़ाते हुए कहा - “यदि वह विदाई दुःखद हो तो कोई विवाह ही क्यों करें?" यह सुनते ही विवेकी ने उत्साहित होकर कहा - "हाँ, यह बात तो है। बिना कारण कोई दुःख में क्यों पड़ेगा? यह स्थिति तो बेटी और माँबाप सबके लिए सुखद हैं। भला संपन्न घर में एवं योग्य वर के साथ बेटी का विवाह हो जाना कोई सहज बात तो नहीं है। ऐसा सौभाग्य सबको कहाँ मिलता है, वह भी इस जमाने में जबकि सभी के सिर पर दहेज का भूत सवार हो?" ___उसके इस उत्तर को सुनकर मैंने कहा - "तुम्हारे मतानुसार ही यदि बिना दहेज दिए बड़े घर में ब्याही गई बेटी की विदाई सुखदायी है तो फिर बेटी एवं उसके माता-पिता विदाई के समय रोते क्यों हैं? माता-पिता तो बेटी का विवाह उसके सुख और अपने संतोष के लिए ही करते हैं और उसे ससुराल में सुखी देख खुश भी होते हैं तथा सुख का अनुभव भी करते हैं। भले ही बेटी की विदाई के समय अपने से उसकी जुदाई होने के कारण मोहवश रोना आ जाता हो; पर उनका वह मोहजनित तात्कालिक दुःख वस्तुतः दुःखरूप नहीं है। इस कारण उनके उन आँसुओं पर कोई आँसू नहीं बहाता।। वस्तुतः वह विदाई दुःखदायी नहीं, सुखदायी विदाई ही है। ऐसी विदाई में ऐसा ही होता है, रोना-हँसना एक साथ होता है, ऊपर से रोते दिखाई देते हैं; पर रोते नहीं हैं। हाँ, उनका वह रोना नकली भी नहीं है, इस विदाई का तो स्वरूप ही कुछ ऐसा है, इसे ही सुखदायी विदाई कहते हैं। ____ हाँ, यह बात अलग है कि बेटी और माँ-बाप के पूर्व पापोदय से दुःखद संयोग मिल जावे तो क्या माता-पिता और क्या बेटी, सभी विदाई के समय अन्तःकरण से दुःखी होते हैं और बिलख-बिलख कर रोते भी हैं, वह विदाई वस्तुतः दुःखद विदाई ही हैं। (43)

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