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विदाई की बेला
अभिमत
संपादक, समन्वय वाणी, जयपुर • पत्र लिखे बिना चैन नहीं पड़ी
आपकी 'विदाई की बेला' इतनी पसंद आई कि आपको पत्र लिखे बिना चैन नहीं पड़ी।
कथा के माध्यम से, मनुष्य जीवन का चित्र खींचकर उस जीवन को शाश्वत सुख की प्राप्ति की ओर मोड़कर सारा मोक्षमार्ग आपने इस किताब में चित्रित किया है। तत्त्वज्ञान प्रतिपादन का एकदम बढ़िया फ्लो बना है।
जैन तत्त्वज्ञान से अनभिज्ञ व्यक्ति तो इसे पढ़े तो उसके ध्यान में भी परम सत्य वस्तु स्वरूप आयेगा तथा रोचक पद्धति के कारण व्यक्ति परी किताब पढ़कर ही रुकेगा। आत्मा को मुक्ति के मार्ग में लगाने, मृत्यु का स्वागत करने एवं जीन की कला में उत्साहित करने की सामर्थ्य इस किताब में है। इसके पहले आपकी 'संस्कार' किताब पढ़ी थी, वह भी अपने विषय की बेजोड़ लगी थी। उसके बाद आपने इतनी जल्दी यह अनुपम कृति देकर समाज का बड़ा उपकार किया है। एतदर्थ आपका हार्दिक अभिनन्दन। -बाल ब्र. श्री धन्यकुमार बेलोकर, महामंत्री • प्रारंभ करने पर पूरी पढ़े बिना छोड़ी नहीं जाती ___'विदाई की बेला' आद्योपान्त पढ़ी। आपने जैनदर्शन के दार्शनिक सिद्धान्तों का संक्षेप सारभूत, निचोड़, सरल, सुगम भाववाही शैली में साहित्यिक कहानी के रूप में इस ढंग से रखा है कि पढ़ने वाले का चित्त आकर्षित होकर आगे-आगे उत्सुकता बढ़ती रहती है। पुस्तक को हाथ से छोड़ने का मन नहीं होता बल्कि ज्ञान की खुराक मिलती रहने से पेट की खुराक में उपेक्षा होती रहती है।
प्राथमिक भूमिका वालों के लिए तो लोह-चुम्बक का काम करती है यह पुस्तक । जैसा नाम वैसा ही गुण है इसमें । चतुर्गति संसार परिभ्रमण रूप भावमरण द्रव्यमरण का विनाश कर समाधिमरण, संन्यासमरण, पण्डित मरण का महोत्सव कैसा होता है, इसका सुन्दर चित्रण किया है। यह कृति देश-विदेश में सार्वजनिक रूप से मनमोहक बनकर सबका अविनाशी आत्मकल्याण में निमित्त बने । यही मंगल भावना है।
- पण्डित देवीलालजी मेहता, उदयपुर (राज.) •समाधि साधक मुमुक्षु को सर्वांगीण उपयोगी पुस्तक
'खनियांधाना में नन्दीश्वर जिनालय शिलान्यास महोत्सव के प्रसंग पर संयोग में बहुत दिनों बाद मुझे आपके सरल-सुबोध शैली में आध्यात्मिक प्रवचन सुनने का सौभाग्य मिला । मेरा हृदय प्रफुल्लित हुआ।
आपकी नवीन कृति 'विदाई की बेला' भी मैंने मनोयोगपूर्वक पढ़ी, पढ़कर भारी प्रसन्नता हुई। निश्चय ही एक समाधि साधक मुमुक्षु जीव को यह पुस्तक सर्वांगीण उपयोगी है, ऐसा मुझे लगा। प्रत्येक आत्मकल्याणार्थी जीव को इसका अध्ययन करना चाहिए?
- वयोवृद्ध विद्वान ब्र. बाबा परसरामजी
अधिष्ठाता, उदासीन आश्रम, इन्दौर (म.प्र.) • प्रत्येक कृति घर-घर में ध्यानपूर्वक पढ़ी जाती है
डॉ. भारिल्ल! आप तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विद्वान बन ही चुके हैं, आपके अग्रज पं. रतनचन्दजी भारिल्ल भी बहुत सुन्दर लिख रहे हैं। उनकी भी प्रत्येक कृति घर-घर में खूब ध्यानपूर्वक पढ़ी जाती है।
पूजन विषयक जिनपूजन रहस्य, समाधि विषयक, विदाई की बेला, सदाचार प्रेरक संस्कार एवं सामान्य श्रावकाचार और णमोकार महामंत्र आदि सभी कृतियाँ बेजोड हैं। आप लोगों की उन्नति देखकर हार्दिक प्रसन्नता होती है।
- पण्डित हीरालाल जैन 'कौशल' - डॉ. सत्यप्रकाश जैन, एम.ए., पीएच.डी., दिल्ली •जैसा विश्वास था, वैसी ही पाई
_ 'विदाई की बेला' कृति प्राप्त की। नाम के अनुसार उसमें सामग्री होगी - ऐसा श्रद्धान था, जैसा विश्वास था वैसी ही पाई। मैंने रात्रि के समय उसका अध्ययन आरंभ किया तो आद्योपान्त पढ़े बिना छोड़ने को जी ही नहीं चाहा।
आप लोगों के परिवार को विलक्षण सरस्वती प्राप्त हुई, यह देखकर अपार हर्ष हो रहा है। आपके चेहरे की शान्तमुद्रा से भी बड़ी शान्ति मिलती है। समय-समय पर हम लोगों के प्रेरणा स्रोत बने रहें।
- ब्र. छक्कीलाल जैन
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