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विदाई की बेला - वीरेन्द्रप्रसाद जैन, प्रधान संपादक, अलीगंज (उ.प्र.) • अहिंसा वाइस (मासिक) दिल्ली, जन-मार्च, ९२ (संयुक्तांक) __ कथा शैली के माध्यम से जैन तत्त्वज्ञान को सरलता से पाठकों तक पहुँचाने का भारिल्लजी का यह प्रशंसनीय प्रयास है । इस विधा में आपकी यह दूसरी पुस्तक है। प्रथम कथाकृति 'संस्कार' का समाज में यथेष्ठ स्वागत हुआ है।
प्रस्तुत पुस्तक में कथानक के द्वारा संन्यास एवं समाधि की चर्चा है। उस संन्यास एवं समाधि की, जिसकी साधना-आराधना न केवल जीवन के उत्तरार्द्ध में या मृत्यु के सन्निकट होने पर की जाती है, अपितु जीवन के स्वर्णकाल में, परिवार के मध्य में रहते हुए भी की जा सकती है और की जानी चाहिए। सरल, सुबोध भाषा में लिखी यह पुस्तक उपदेशात्मक शैली में है। मुझे लगता है कि यह 'संस्कार' से भी अधिक जनप्रिय होगी।
- सतीशकुमार जैन, संपादक, श्रमण-साहित्य संस्थान, दिल्ली • इससे जीवन जीने की कला का ज्ञान भी होता है।
आपकी अनुपम कृति 'विदाई की बेला' पढ़कर मुझे ऐसा लगा कि यह कृति हम जैसे वृद्धों के लिए ही लिखी गई है, जिनकी 'विदाई की बेला' अब नजदीक है। वास्तव में यह उपन्यास तत्त्वचर्चा व सामयिक तत्त्वज्ञान से भरा हुआ है। इसको पढ़कर तत्त्वज्ञान तो होता ही है, जीवन जीने की कला का ज्ञान भी होता है। आत्मार्थी को तत्त्वज्ञान की प्यास कैसी होती है या कैसी होनी चाहिए, यह भी इसमें दर्शाया गया है।
आपने 'विवेकी' को समाधिमरण कराकर, समाधि भावना को प्रेक्टीकल रूप देकर समाज का बहत ही उपकार किया है। इसे पढ़कर मनुष्य को सच्ची समाधि की प्रेरणा मिलती है। इसके लिए आपको जितना भी धन्यवाद दिया जाय, कम है।
- श्री सागरचन्द जैन, 'विचारक', भोगाँव (मैनपुरी) • यह हमारे जीवन पर पूरी उतरती है
जैनपथ प्रदर्शक में आपके द्वारा लिखित 'विदाई की बेला' की किश्तें पढ़ीं, बहुत बढ़िया लगीं, यह हमारे जीवन पर पूरी उतरती हैं। आप जो भी लिखें, उसकी पुस्तक अवश्य बननी चाहिए। इसे भी पुस्तक के रूप में
अभिमत
१३७ अवश्य छपायें। -स्वरूपचन्द मोतीलाल जैन, सनावद (म.प्र.) • आत्मधर्म बतानेवाली कृति
आपकी विदाई की बेला' और 'संस्कार' दोनों ही किताबें बहुत ही रोचक, मार्मिक एवं आत्मधर्म बतलानेवाली हैं। इन्हें पढ़कर बहुत हर्ष हुआ। ऐसी ही मार्मिक ज्ञान देनेवाली किताबें आपके द्वारा लम्बे काल तक लिखी जाती रहें, यह मेरी मंगल कामना है।
- व्होरा हीरालाल जैन, पुणे (महाराष्ट्र) • चैतन्यसुख मासिक, उदयपुर ___पण्डित रतनचन्द भारिल्ल की विदाई की बेला' संस्कार की तरह ही कथा साहित्य की दूसरी कड़ी है। यह सभी प्रकार के पाठकों के लिए रोचक, ज्ञानवर्द्धक एवं अध्यात्म का सार बतानेवाली अनुपम कृति है। इसकी भाषा सरल एवं सुबोध है। ___ गृहस्थी में रहते हुए भी इसके पाठकों को आत्मा की सच्ची साधना एवं आराधना की प्रेरणा मिलेगी। गहस्थ भी समाधिमरण कर अपना ऐहिक एवं पारलौकिक जीवन सुखी बना सकेगा।
- पण्डित मांगीलाल अग्रवाल • अपने पैसे खर्च करके भी मित्रों को पढ़ने दूंगा
'विदाई की बेला' पढ़कर मुझे इतनी शक्ति व शान्ति मिली कि मैं शब्दों में वर्णन नहीं कर सकता। इस पुस्तक ने मुझ जैसे रेगिस्तानी प्यासे प्राणी को पानी ही नहीं, बल्कि अमृतपान कराया है। मैं इसे अपने पैसे खर्च करके भी मित्रों को पढ़ने दूंगा। - राजीव जैन, दिल्ली •जैन साहित्य को नई देन __ 'विदाई की बेला' उपन्यास विधा में लिखकर अपने जैन साहित्य को एक नई देन ही है। वस्तुतः यह सर्वश्रेष्ठ बन पड़ा है। एक आत्मार्थी जीव के लिए समतामय जीवन जीने के लिए समाधिमरण की यथार्थ जानकारी के लिए आगम के आलोक में लिखी गई यह कृति अत्यन्त उपयोगी बन गई है। -बाल ब्र. कैलाशचन्द शास्त्री 'अचल',
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