Book Title: Vichar Ratnakar
Author(s): Kirtivijay, Dansuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
जो जारिसमओ कालो, भरहेरवएसु होइ वासेसु । ते तारिसया तइया, अडयालीसं तु निजवग्गा ॥ १ ॥ एए उक्कोसेणं, परिहाणीए जहन्नो दुनि । एगो परित्तिपासे, बीओ पाणाइगच्छेजा ॥ २ ॥ कियदग्रतश्च-सेसाणं जीवाणं, दाणरुइत्तं सहावविणियत्तं । तह पयणुकसायत्तं, परोवयारित्त भव्यत्तं ॥१॥ दक्खिन्नदयालुत्तं, पियभासित्ताइविविहगुणनिवहं । सिवमग्गकारणं जं, तं सव्यं अणुमयं मज्झ ॥२॥ इत्याराधनापताकायां ३११ गाथा ॥२॥
अथ गर्भस्वरूपं लिख्यते
दाहिणकुच्छी पुरिसस्स, होइ वामा उ इत्थियाए य । उभयंतरं नपुंसे, तिरिए अढेव वरिसाई ।।१६।। इमो खलु जीवो अम्मापिउसंजोगे माउओयं पिउसुकं तं तदुभयसंसह कलुसं किविसं तप्पढमयाए आहारमाहारेइ आहारमाहरित्ता गम्भत्ताए वक्कमेइ ।। सत्ताहं कललं होइ, सत्ताहं होइ अब्बुयं । अब्बुया जायए पेसी, पेसीयो य घणं भवे ॥१८॥ तो पढमे मासे करिसूणं
पलं जायइ १। बीए मासे पेसी संजायए घणाशतइए मासे माऊए डोहलं जणइ ३। चउत्थे मासे माऊए अंगाई पीणेइ ४। पंचमे || मासे पंच पिंडियाउ पाणिं २ पायं २ सिरं चेव निवत्तेइ । छठे मासे पित्तसोणियं च उवचिणेइ ६। सत्तमे मासे सत्तसि
रासयाई पंच पेसीसयाई नव धमणीयो नवनउई च रोमकूवसयसहस्साई निव्वत्तेइ विणा केसमंसुणा सह केसमंसुणा सा अद्धवाओ रोमकूदकोडीओ निवत्तेइ ७ । अट्ठमे मासे वित्तीकप्पो हवइ ।। इति श्रीतन्दुलवैयालिकप्रकीर्णके ॥ ३ ॥
केचिच्चान्तकाले गृहस्थानां दीक्षाग्रहणं प्रति सन्दिह्यन्ते यदीक्षा हि विहारादिसामर्थ्य सत्येव ग्राह्येति, परं तदसमीचीनम् Hशाखे तस्योक्तत्वात् , तथा हि-परगच्छआगयस्स उ, निरईयारस्स नेव उद्दवणा । दिसिबंधो कायब्बो, तह पजंते वयारोवो
Jain Education Inter
For Private & Personel Use Only
Niww.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416