Book Title: Vasudevhindi Part 2
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 22
________________ २१८ वसुदेवहिंडी [ रत्तवती-लसुणिका 1 I ता पभयं रयणीए । गतो मि नयरसमीवं । पुच्छिओ य मया पुरिसो- किं नामयं नयरं गंगानदीतीरभूसणं ? । तेण भणियं - इलावद्धणं णयरं. कओ वा तुब्भे एह जओ न जाणह ? ति । मया भणिओ - किं तुह एयाए कहाए ? त्ति । तत्थ से हाओ । पच्छण्णाभरणो छाया - पुप्फ-फलसंछण्णपायवोवसोभियं धणतोवमाणं पस्सामि पुरवरं सुकउचपा5 यारदुवारा गार्दै फरिहपरिक्खेवैविडल गोउरवरं । पविट्ठो य म्मि रायमग्गमणेगरहसुसंचारं बहुरसिक - विविधवेसनराऽऽकुलं । पस्लामि पसारियाणि दुगुल्ल-चीर्णसुय- हंस लक्खण-कोसिंज्ज-कसवद्धणादीणि वत्थाणि, तहा सेकयाणि कुंकुम- कुवलय- पलास-पारावयगीव-मणोसिला - पवालवण्णविविहरूवगविराइयं (?), वीणापट्टगनिगरे, मिगलोमिके य, विविहरागे य अमिलाकंबले, मणि-संख-सिल-प्पवाल - कणग-रययमाभरणविहाणाणि य, तहा गंधंगाणि 10 घाण - महराणि सहे । एगस्स य सत्थवाहस्स आवणमुवगतो म्हि । सो य कइकजणवक्खित्तचित्तो वि ममं सादरं भणति -- उवविसह आसणे त्ति । उवविट्ठो मि । तस्स य मुत्तमेव सयसहस्सं पडियं । सो य परिओसवियसियमुहो कयंजली ममं विष्णवेइ - सामिपाया ! अज्ज तुब्भेहिं मम गिद्दे भोत्तद्वं. कुणह पसायं ति । मया पडिवण्णं - एवं नामं ति । सो भणति - वीसमह इहेव मुहुत्तं, जाव गंतूण केणइ कारणेण एमिति । तेण य 15 दासचेडी य सुरुवा ठविया आसणे । सो गतो । सा मे पुच्छमाणस्स परम्मुही पडिवयणं देति । मया भणिया - बालिके ! कीस परामुही संलवह ? अणभिजाया सि ? । सा भइ I हस मे पडिकूलो गंधो लसुणोपमो, तं जाणमाणी कहं तुब्भं अभिमुही ठाइस्सं ? ति । मया भणिर्यामा दुम्मणा होहि, अवणेमि ते जोगेण वाहणपरिकुट्ठाई गंधाई. आहि दाणि जाणि अहं उवदिसामि त्ति । उच्चारियाणि जहा, तीय उवणीयाणि । सवाणि 20 य जोइयाणि संणिद्वयं सण्हकरणीयं नलीयंते भरियाणि । कया गुलिकाओ, जाओ तं गंधं उवहणंति, जाओ य कुवलयसुगंध वयणं कुणंति । कमेण य तीय मुद्दे धरियाओ । जया सुरभि । आगतो सत्थवाहो । तीए य तबिहं गंध उवलक्खेऊणं णेति मं गेहे । ततो सोवयारं मैज्जाविड विवित्ते अवकासे महरिहवत्थपरिहियस्स उवणीयं भोयणं कणगरययभायणेण सुकुसलोपायसिद्धं, सीह केसर - कुवलयैफालफलमोदकं (?), पप्पदुत्तर कुम्मासमो25 यगउक्कारिक सिरिवट्टिमातिका (?) भक्खा, मिदु-विसदै सगसिद्धो य कलमोयणो, रासादउपाय विविहा लेज्झा य, जीहापसायकराणि ठाणकाणि य विविहसंभारसिद्धाणि, पेज्जा काय कण्ण (?) । ततो सादरपरिजणोवणीयं भोयणं भुत्तो य, कलयचुण्णपक्खालियकर-वयणो १ या रयणी । पगतो क ३ शां० ॥ २ तुम्ह शां० बिना ॥ ३ यं पस्सा शां० विना ॥ ४°ढपरिक्खे० शां० मे० विना ॥ ५° वगोड शां० विना ॥ ६ रं पत्तिविग्वेयं ति राय ली ३ ॥ ७ °सेन शां० ॥ ८ या महुणा होइ, अव कसं० शां० विना ॥ ९ सेणिहियं शां० ॥। १०°ओ य गं० शां० विना ॥ ११ 'सु' शां० ॥ १२ वं तं व० शां० विना ॥ १३ मज्जिड शां० ॥ १४ शां० विनाऽन्यत्र यणाफलमोवकं कसं० मोसं० उ० मे० । यणाफलमोकबकं ली ३ सं० गो ३ ॥ १५ हिसाति' शां० ॥ १६ °मि । दु सर्वेष्वादर्शेषु ॥ १७ °दसिद्धो उ २ मे० विना ॥ १८ रायासासद० शां० विना ॥ १९ लेब्भा य उ २ मे० विना ॥ २० कण । त° ली ३ । कण्णओ सोदश ॥ २१ 'लावण्णप शां० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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