Book Title: Vasudevhindi Part 2 Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 72
________________ २६८ वसुदेवहिंडीए [ मिगद्धयकुमारस्स दुवे केइ पुरिसा पट्टणमणुपविट्ठा । तत्थ एगो अकुसलो परसुं गहाय सुज्जोदए आरो दारुपाडणं करेंतो दिवसेण कहावणं निवसेज्ज महया परिस्समेण । बीओ पुण कुसलो तुच्छयं पणियमादाय संववहरंतो कलाए अप्पेण परिस्समेणं बहुं अजिणत्ति ॥ तं जइत्थ जम्मण - मरणबहुलं संसारं छिंदिउकामा ततो कुधम्मं परिचइत्ता जिणमयं 6 पडिवजह । ततो ते (भे) हियाय भविस्सइति ॥ ततो ते हरिसवसूसवियतणुरुहा ममं एवं वयासी – देव ! परमणुग्गिहीया मो इमेण सुगमग्गोवएसेण, तहा ( ग्रन्थाग्रम् - ७६०० ) करिस्सामोति । ततो सावसे उवएसदाणेण पूएऊण पत्थिओ मि तेहिं नयणमालाहिं पीतिविसप्पियाहिं बज्झमाणो, कमेण पत्तो जणवयं गोउला उल-निष्फण्णसस्से गामे पस्समाणो । तण्णिवासीहिं 10 गहवतीहिं 'नूणं एसो तियसो केणइ कारणेण धरणियलमवतिष्णो पूएयवो' त्ति जंपमाणेहिं विणयपणामियमुद्धाणेहिं सयणा ऽऽसण-वसण-पाण-भोयणेहिं सायरं सेविजमाणो, सुद्देहिं बसहि-पायरासेहिं पत्तो मि सावत्थों नयरिं । तीसे य समीवत्थेसु पुप्फ-फलभारणमिरतvadaसोहि उववणेसु वीसामियदिट्ठी परसामि नयरिं विज्जाहरपुरवर सिरिं समुवहंती तियसपतिमतिनिम्मियमिव । मणुयलोगविम्हियच्छाए पस्सामि तत्थेग दे से' पुरपागार सरिस15 पागारपरिगयं विणैयणयधरापगारवलयमुल्लोक पेच्छणिज्जमाऽऽययणं सुणिवेसियवलभि-चंदसालिय- जालालोयण-कवोयैमा (पा) लिपॅविराइयकणयथूभियागं ओसहिपज्जलियैसिहररययगिरिकूडभूयं । 'कस्स मण्णे देवस्स आययणं होज ?' त्ति चिंतयंतो मि पविट्ठो गोउरेण महया । पस्सामि खंभट्टसभूसियं मंडवं विविहकटुकम्मोवसोहियं । बंभासणत्थियं च जालगिहमज्झगयं, सिलिट्ठ रिट्ठमणिनिम्मइयकार्य, पहाणसुररायनीलनिम्मिय सिणिद्धसिंगं, 20 लोहियक्खपरिक्खित्तविपुलका कारणयणं, महामोल्लकमलरागघडियखुरप्पएसं, महल्लमुत्ताइलविमिस्सकंचणकिंकणीमालापरिणद्धगीवं, तिपायं महिसं पस्सिऊण पुच्छिओ मया पुबपविट्ठो माहणो-अज्ज ! जाणसि तुमं ?, एस महिसो किं रयणदुल्लहयाए तिपाओ ट्ठाविओ ? अहवा कारणमत्थि किंचि ?. कहेहि, जइ से न पाहुणो सि । ततो भणति — भद्दमुह ! अस्थि कारणं. कहेमि ते, जइ सोडं अत्थि अहिप्पाओ । ततो मि आसीणो एक्कम्मि 25 पएसे । माहणो भणति - अहं इहेव जातो नयरे परिवडिओ य इंदसम्मो नाम. जह मया मिगद्धयचरियं गायमाणाणं विउसाणं मूले बहुसो सुयं तहमाइक्खिस्सं. सुणसुमिगद्धयकुमारस्स भद्दगमहिसस्स य चरियं 1 आसी इहं विजियसत्तु- सामंतो जियसत्तुनाम राया । तस्स पुत्तो कित्तिमतीए देवीए ओ मिगद्धयो नाम कुमारो । सो य ' विणीओ वियक्खणो धीरो चाई सुहाभिगम्मो १ °से पुरपारसरिसपागारपरिगयं ली ३ । °से सुरपब्भारस रिससालपरिगयं शां० ॥ २ वितोयणधरपगरबहुलमुलो' शां० ॥ ३ बोलमाइप शां० विना ॥ ४ पविसारियक शां० ॥ ५ 'यसरीररय शां० ॥ ६ 'यमूसि° उ२० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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