Book Title: Vasudevhindi Part 2 Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 71
________________ उवएसदाणं ] सत्तरसमो बंधुमतीलभो। संखेवो रसपरिच्चाओ कायकिलेसो संलीणया पायच्छित्तं विणयो वेयावच्चं सज्झाओ झाणं विउस्सग्गो त्ति । एयं मग्गं जिणाभिहियं । भवियस्स पहवत्तिणो जिणवयणाणुरत्तस्स निरुद्धाऽऽसवमग्गस्स नवस्स कम्मस्स उवचओ न भवति, पोराणस्स य परिखओ, तो निन्जियकम्मस्स निबोणं । एस समासेण धम्मो। वणप्फतीए जीवसिद्धी । । एयस्स पुण धम्मस्स अट्ठारससीलंगसहस्सालंकियस्स जीवदयामूलं । तुब्भे कंद-मूलपुप्फ-फल-पत्तोपभोगेणं पाएणं वणप्फतिकाए पीलेह, ते अवितहाऽऽगमप्पमाणाओं 'जीव' त्ति सद्दहियवा । जिणा अवितहवाइणो। किंच-विसयोपलद्धीए य जहा मणुस्सा पंचइंदिएहिं सद्दादी विसए उवलभंति, तहा इमे वि जम्मंतरकरणभावयाए लद्धीए य [*एतेण*] फासिदिए विसए उवलभंति । जहा समाणे सउणभावे सुगिहाणं गिहकरणकोसल्लं न तहा 10 अन्नसिं, जहा वा सुग-सारिगाणं वयणकोसल्लं न तहा सेससउणाणं, जहा चउरिंदियाणं भमराणं वंसविवरविण्णाणं न तहा तज्जाइयाणं अन्नेसिं; एवं वणप्फइकाइयाण वि विसओवलद्धी साहिजइ लद्धीविसेसेण किंचि । जह-[सद्दोवलद्धी ] कंदलकुडवकादिसंभवो गज्जियसदेण, रूवोवलद्धि आसयं पडुच्च गमणेण वल्लि-लयामादीणं, गंधोवलद्धि धूवणेण केसिंचि य, रसोवलद्धि पायणेण इच्छुमादीणं, फासोवलद्धी 15 छिण्णपरोययादीण संकोएण, निहीं तामरसादीणं पत्तसम्मीलणेण, रागो असोगादीणं सनेउरेण पमयाचलणतालणेण, हरिसो सत्तिहाण अकालपुप्फ-फलपसव[]णं । जहा य अणेगिंदिया जाइधम्मा वुविधम्मा, हियाहारेण य सणिद्धच्छविया बलवंतो नीरोगा अहाउयपालिया भवंति, अहिएण य किसा दुब्बला वाहिपीलियसरीरा जीविएण य विमुंचंति; तहा वणस्सइकाइया वि जाइधम्मा बुड्डिधम्मा, महुरजलसित्ता य बहु-20 फला सिणिद्धपत्त-पल्लवोवसोहिया परिणावंतो दीहाउया भवंति, तित्त-कडु-कसाय-अंबि. लाँऽऽइसित्ता मिलाण-पंडु-फरिसपत्ता विफला विणस्संति वा । एवमादीहिं कारणेहिं 'जीव' त्ति रुइरेणाऽऽराहियवा । सबओधारेण य अगणिकाएण य कजाणि कुणमाणा बहूणं सत्ताणं गयर्णिधण-पुढविसंसियाण विणासणाय वट्टमाणा, उदगारंभे य तैयस्सियाणं पुप्फविणिस्सियाण य विराहणं करेंता कहं अविहिंसका भविस्सह ? । पाणाइवाए य25 वट्टमाणो जो भणिज 'अहिंसओ मि' त्ति स कहं सच्चवादी ? । तं तुब्भे दुरागमेण जं किलिस्सह तवबुद्धीये सो वि हिंसादोसदूसिओ तवो थोवनिजरो भवे देवदुग्गतिहेउववाओ। साहवो पुण जिणप्पणीयमग्गचारिणो विण्णायजीवा संजमाणुवरोहेण तवमणुचरंता महानिजरा भवन्ति नेवाणजोग्गा, महिडीएसु वा देवेसु उववत्तारो भवति । जहा जिण्णक शां०॥ २ °ण ति । तं जइ त्थ जम्मणमरणबहुलं संसारठिइं चइउकामा तओ कुधम्म परिचइत्ता जिणमयं हियसुहावह पडिवजह । एयरस अट्ठा शां० विना ॥ ३ 'लभंति, जहा समाणे सउण° शां० विना ॥ ४ विसद्दो(दो)वलद्धी शां०॥ ५ इच्छमा० उ० मे० विना ॥ ६°द्दा सिरीसादी शां०॥ ७°लाऽऽयसि शां० विना ॥ ८ तन्निस्सि शां ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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