Book Title: Vasudevhindi Part 2
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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पियंगुसुंदरीसंबंधो] अट्ठारसमो पियंगुसुंदरीलंभो।
ततो बितियदिवसे मुहुत्तुग्गए सूरिए गंगरक्खिओ आगओ ममं पणामंजलिं काऊणं विण्णवेइ-सामि ! जं तुमए अईयदिवसे भणिया(यं) तुब्भेहिं य लवियं जाणामि तावं ति. जइ भे परिचिंतियं तओ तस्स कीरउ पसाओ त्ति । तओ मया सुचिरं चिंतेऊण लवियंउज्जाणे भवउ समागमो त्ति । (प्रन्थानम्-८७००) तओ विसजिओ गंगरक्खिओ। मए वि य विसयजोग्गो कओ अप्पा । ततो मं अवरोहकालसमयंसि विहीए निग्गच्छ-5 माणं जणो लवइ-अहो ! इमो दिवो त्ति ।
एवं ससंकिओ हं, गओ उज्जाणं परमरम्मं । ___तत्थ य बलिनिमित्तेण, नागघरं आगया कण्णा ॥ ततो गंगरक्खिओ सवं उज्जाणं सोहेऊण तत्थ कण्णं अइजणं पयत्तेणं दारं रक्खति । ततो हं गंधवेण विवाहधम्मेण कण्णं विवाहेऊण अतुले तत्थ भोए भुंजामि । ततो मे गंगर-10 क्खिओ लवति-विसज्जेह सामिपादा! देवि ति । तओ सा ममं लवइ-न हु जुजति अक्खिविउ अवितण्हाए ममं नाध ! त्ति । एवमहं चिरचिंतियाणं मणोरहाणं इच्छं पूरेमि । तओ पुणो गंगरक्खिओ लवइ-तुझं सामिपाया ! सिग्छ महिलावेसो कीरउ अंतेउरं पविसमाणेणं। ततो मए कहिंचि दुक्खेण पडिवन्नं । काऊण य महिलावेसं
पवहणं आरुहिय पयत्तेण अइनीओ कण्णाय वासघरं ।
भुंजामि तत्थ भोए, अणुसरिसे देवलोयाणं ।। पत्तो य ततो पभाए गंगरक्खिओ देविं लवइ-नीणेह सामिपादा। ततो सा (सो) पायवडियाय लविओ देवीए-सत्ताहमेव देहि वरं । ततो भीतो लवइ-अहो ! मओ हं ति । ततो सत्ताहे पुण्णे विण्णवेइ-सामिणी! निजहि त्ति । ततो सामिणा लविओ-अम्ह वि दिजउ सत्ताहो त्ति । 'नट्ठो मित्ति भणंतो तओ पुणो एइ सत्ताहे । ततो णं पुणो कोमु-20 इया लवइ-अम्हेहिं किं उवाहणाओ खइयाओ ?, जह ते एएसिं सत्ताहं वरो दिण्णो". तहा अम्ह वि देहि त्ति । एवं मे तत्थ एकवीसं दिवसा मुहुत्तसमा अइच्छिया । ____ अह य मे आगओ गंगरक्खिओ विण्णवेइ भीओ सुक्कोट्ठ-कंठो-सामि ! अंतेउरे अमञ्च-दासी-भिच्चवग्गेसु सत्वजणम्मि य विण्णायं जायं ति, फुडियं पुरीए-कोटुं कण्णंतेउरं समन्भंति (?)। इयरए मालागारा भणंति-गं( भंडाइया (?) । ततो कोमुदिया लवइ-जइ 25 पुरवरीए कोढुं फुरियं तओ अच्छंति सामिपाद ति। ततो तं रूववेक्खा गंगरक्खियं दीणकलणुगं अहं लवामि-मा भाहि, गच्छ, रायाणं लवाहि-जं भे देवीए अइरियाए भणिया तं तहेव, पविट्ठो अंतेउरं कण्णाए भत्तारोत्ति । सोमया पलविओ निग्गतो गओ रायसमीवं।
तत्तो अणुमुहुत्तस्स ऍति कोमुदिका किलिकिलायंती।
अह गंगरक्खिओ एइ पूडओ सामिपादेहिं॥ . . १°मो देवो त्तिक ३॥ २ शां० विनाऽन्यत्र 'ओ लविओ विस ली ३ गो ३ उ० मे । ओऽमिहिओ विस क ३ ॥ ३ कोडं क° शां० ॥ ४ धारंडा उ २ मे० विना ॥ ५ कोई फु शां०॥ ६ यंतेउरे भच्छं° उ २ मे० विना ॥ ७ एदि को शां० ॥
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