Book Title: Vasudevhindi Part 2
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
________________
३२६
वसुदेवहिंडीए
[संति जिणपुवभवकहाए भणिया 'तुब्भं पमाणं'ति पत्थिया मयणमोहिया । तेहिं चिय आगारियं-कणयसिरि कुमारी अपराजिया अणंतवीरिया हरंति, जस्स सत्ती अत्थि सो निवारेउ-त्ति वेउ. वियविमाणा य ते गच्छंति । तयणंतरे य से हल-मुसल-गयाईणि रयणाणि उवट्ठियाणि । दमियारिणा य विजाहरा पेसिया जुद्धं समालग्गा पडिया य । तेसिं पभावं दटूर्ण 5 ते अ पडिहए उवलद्धणं कुविओ दमियारी निग्गओ। भूयरयणाडवीए उवरि ओलग्गिया मायाहिं जुझिउं पयत्ता । ताओ य निवारियाओ द₹णं अत्याणि आवाहियाणि । ताणि वि अ वत्थगाणि जया कयाणि तया खीणाउहो चकं मुयइ अणंतविरियवहाए । तस्स पडियं चलणब्भासे । गहियं च णेण पजलियं । ततो सचक्केणं हओ दमियारी । हए लद्धविजओ इसिवाइय-भूयवाइएहि य अहिनंदिओ-उप्पण्णा य बलदेव-वासुदेवा 10 विजयद्धसामिणो त्ति । एयं च सोऊणं विजाहरा पणया-सरणं होह णे । सो भणइवीसत्था होहि-त्ति ।
तेहिं पणएहिं 'कंचणगिरिस्स उवरिएणं एत्थ अरहता संठिया, मा णे आसायणा होज' त्ति ओवतिया । तत्थ य कित्तिहरो अणगारो वरिसोववासी पडिमं ठिओ
उप्पण्णकेवलनाण-दसणो अहासण्णिएहिं देवेहिं महिजमाणो वंदिओ अणेहिं विणएण, 15 पज्जुवासमाणा धम्मं सुगंति केवलिसयासे । धम्मम्मि य परिकहिए कहंतरे कणयसिरी
पुच्छइ–भगवं! अहं पुवभवे का आसि ? । तओ पकहिओ मुणिवरोकणयसिरीए पुवभवो
धायइसंडे दीवे पुरच्छिमल्ले भारहम्मि वासे संखपुरगं ति गामो। तत्थ सिरिदत्ता नाम दुग्गइया परिवसइ । सा य परिहिंडमाणी कयाई सिरिपवयं गया । तत्थ 20 य सा सबजसं साहुं एगंतम्मि निसण्णं पासति, तं वंदिऊण तस्स पायमूले धम्मं सोऊणं
धम्मचक्कवालं तवोकम्मं गिण्हेइ । दोन्निऽतिरत्ताई सत्ततीसं चउत्थगाइं च काऊण खवणपारणए सुधयं साहुं पडिलाहेइ । धम्म गिण्हिऊण वितिगिच्छसमावण्णा जाया ।
अह सा कयाइ सवजसं साहुं वंदिउँ पत्थिया समाणी विजाहरजुयलं पासिऊण वामोहियचित्ता नियत्ता । तस्स य वितिगिच्छादोसेण अणालोइय-पडिकंता कालं 25 काऊण जंबुद्दीवे दीवे पुवविदेहे रमणिजे विजए वेयड्ढे पवए सुमंदिरे नगरे कणग
पुजो नाम राया परिवसइ, भज्जा से वाउवेगा, तस्स पुत्तो कित्तिधरो नाम अहं, भजा य मे अनलवेगा, तीसे सुओ एस दमियारी राया, भज्जा से मयरा, तीसे तुम सुया कणगसिरी जाया । रजे य अहं दमियारी ठवेऊण संतिजिणसगासम्मि पब
इऊणं ठिओ अहं इहं संवच्छरियं महापडिमं । खीणे य मोहणिज-नाणावरण-दसणाव80 रण-अंतराए य अज्ज उप्पण्णं केवलं नाणं । तेण य वितिगिच्छादोसेण सकम्मजणिएण तुम इहं कुलघरविओगजणियं पीइमरणं च पत्ता सि ।।
इमं दुक्खं सोऊण पगइमेयं कणगसिरी निविण्णकामभोगा हल-चक्कहरे विण्णवेइ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228