Book Title: Vasudevhindi Part 2
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 159
________________ वसुदेवेण भज्जादुगपरिणयणं] चउवीसइमो पउमावतीलंभो । याओ अमञ्चभवणे कणयतिंदुगेण कीलमाणीओ । पुच्छिया य मया एगा चेडिया-कस्स एयाओ दारियाओ ? । सा भणइ-सुणह देव !, जा णवुग्गयपियंगुपसूयसामा, उवचिय-सुकुमार-पसत्थचरणा, समाहिय-पसस्थ-निगूढसिर-जाणु-जंघा, निरंतरसंहिओरू, विच्छिण्णकडिवत्ता, गंभीरनाहिकोसा, वल्लवविहत्तकंतमज्झा, तणुय-मउयबाहुलइया, पसण्णमुही, बिंबोडी, सिणिद्ध-सियदंती, विसाल-धवल-5 ऽच्छी, संगयसवणा, सुहुम-कसणसिरया, सहावमहुरवाइणी, गंधवे कयपरिस्समा सा अम्हं सामिणो भद्दाए देवीए दुहिया भद्दमित्ता नाम । जा उण कणियारकेसरपिंजरच्छवी,कणयकुंडलकोडीपरिघट्टियकवोलदेसा, विकोसकमलकोमलमुही, कुवलयनयणा, कोकणयतंबाहरा, कुमुदमउलदसणा, कुसुमदामसण्णिहबाहुजुयला, कमलमउलोपमाणपयोहरा, किसोयरी, कंचणकंचिदामपडिबद्धविपुलसोणी, कयलीखंभसरिसऊरुजुयला, कुरुविंदवत्तोवमाणजंघा, 10 कणयकुम्मोवमाणचलणा, नट्टे परिनिर्दिया एसा सोमस्स पुरोहियस्स कुंदलयाए खत्तियाणीए पसूया सच्चरक्खिया नाम । एयाओ पुण सहवड्डियाओ वयंसीओ अण्णोण्णपिइघरेसु अविभत्तीए माणणीयाओ जोवणमणुप्पत्ताओ तुम्भं नचिरेण उवायकारियाओ भविसंति । एवं मे सुयं सामिणीणं संलवंतीणं-ति वोत्तण कयप्पणामा गया। ततो सोहणे दिणे राइणा साऽमञ्च-पुरोहिएण महया इड्डीए तासिं कण्णाणं पाणिं गाहिओ। 15 दिण्णं विउलं पीइदाणं तिहिं वि जणी(णे)हिं । ताहिं य मे सहियस्स मणाणुकूलं विसयपरिभोगसंपदाए कणेरुसहियस्सेव गयवरस्स रममाणस्स मुहुत्तसमा समतिच्छिया दिवसा । समुप्पण्णवीसंभ-पणया-ऽणुरागाहिं य पियाहिं पुच्छिए कहतरे कहेमि से गुरुवयणं, गंधवे नट्टे य विसेसे । एवं मे तत्थ वसंतस्स वच्चइ सुहेण कालो ॥ ॥ भद्दमित्ता-सच्चरक्खियाणं लंभो तेवीसहमो सम्मत्तो॥ 20 __ भइमित्ता० लंभग्रन्थानम्-८४-२२. सर्वग्रन्थानम्-१००७९-५. चउवीसहमो पउमावतीलंभो कयाई च कोल्लइरणगरदसणूसुओ तासिं दोण्ह वि असंविदितेण एगागी निग्गतो पढिओ . दाहिणपञ्चच्छिमेण पस्समाणो गोबहुलजणवए । निमंतेइ मं जणवओ सयणा-ऽऽसण-भोयण-25 ऽच्छायणेहिं । सुहेहिं वसहि-पातरासेहिं पत्तो मि कोल्लयरं नयरं सोमणसवणदेवयाँ[य]यणपवत्तभत्त-पाणदाण-पवामंडवमंडियदिसामुहं, वारिधरवेगवारियपासादपंतिसंबध(ध), रययगिरिसरिच्छपायारपरिगयं । वीसमिउमणो जम्मि य पविट्ठो एगं असोगवणं पुप्फोवगदुम-गुम्म-लयाबहुलपुप्फोच्चयवावडेहिं तम्मि दिहो मालागारेहिं । ते अण्णमण्णस्स मं उवदंसेमाणा ससंकिया उवगया विणएण विण्णवेति-आणवेह देव ! किं करेमि?-ति । मया 30 १ समस्थपस शां०॥२ क ३ गो ३ उ० मे० विनाऽन्यत्र-परियट्टियक ली ३ । परियहक शां० ।। ३°निच्छिया ली ३॥ ४ या सा शां०॥५'लवणं ति ली३॥ ६ याजण° शा० विना ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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