Book Title: Vasudevhindi Part 2
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 125
________________ सिरिविजय- असणिघोसाईणं पुषभवो ] एगवीसइमो के मतीलंभो । इंदु से बिंदु से संबंधो तस्स य रण्णो दो भज्जाओ अहिनंदिया सीहनंदिया य । अभिनंदियाए दो पुत्ता इंदु सेोबिंदुणो । कोसंबीए य बलो राया, सिरिमती से भज्जा, धूया सिरिकंता । सा सिरिकंता तेण रण्णा इंदु सेणस्स दिण्णा, विसज्जिया य सपरिवारा अणतमईए गणियाए समं । ते य इंदु - बिंदु सेणा अणतमतीए गणियाए कारणा जुज्झति देवरमणे 5 उजा 'महं महं'ति । ततो राया सिणेहसमयाए य मउयचित्तयाए य निवारेडं न समत्यो ' मा एएसिं मरणं पस्सामि'त्ति तालपुडभावियं परममग्घाएऊण सह देवीहिं कालगतो । माहणी व तेणेव विहिणा मैया 'मा कविलस्स वसा होहं'ति । ततो चत्तारि जणाणि जंबुद्दीवे दीवे आयाणि उत्तरकुराए य सिरिसेणो अहिनंदिया य मिहुणं, सीहनंदिया सच्चभामा य मिहुणं । सिरिसेणो सीहनंदिया पुरिसा, इयरे इत्थियाओ 110 इरेसिपिइंदु - बिंदु सेणाणं विज्जाहरो विमाणेण आगम्म णहयलत्थो अंतरे ठाइऊण इणमत्थं बोहेइ-भो कुमारवरा ! सुणह ताव इओमुहा मम वयणंमणिकुंडलीविज्जाहरसंबंधो इव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सीयामहानईए उत्तरेण पोक्खलावई नाम विजयो | तत्थ वेयड्डो पवओ विज्जाहर चारणालओ रमणिज्जो नवकूडमंडियसिहरो सर- 15 यब्भसिरिप्पयासो । तत्थ पणपण्णनयरमंडियाए उत्तरिल्लाए सेढीए नयरे आइचाभे सकुंडली नाम राया परिवसइ, तस्स भज्जा अजियसेणा, तीसे मणिकुंडेली नामं अहं पुत्त । ततो कयाई जिर्णवंदओ पुंडरगिणिं नयरिं गओ जिणभत्तीए । तत्थ य अमियजसं जिणवरं वंदिऊण तिपयाहिणं काऊण जर मरण- किलेसनासणकरं धम्मवयणं सोऊण करयलकथंजलिउडो कहंतरे नियगभवं पुच्छामि । कहेइ य सो भयवंमणिकुंडली - इंदुसेण-बिंदुसेणाणं पुचभवो ३२१ पुक्खरद्धे अवरिल्ले सीतोदादाहिणओ सलिलावती नाम विजओ । तत्थ य वीइसोगा नयरी धवल - तुंगपायारा बारसजोयणदीहा नवजोअण वित्थडा । तत्थ नयरीए चोहसरयणवई नवनिहिसमिद्धकोसो रयणज्झओ णाम चक्कवट्टी परिवसइ । तस्स य दुवे भज्जाओ परमरुवदरसणीयाओ कणयसिरी हेममालिणी । कणयसिरीए कणयलया 25 पउमलया य दो धूयाओ । हेममालिणीए पउमा धूया । सा पउमा अजियसेणऽज्जाए सयासे धम्मं सोउं कम्मवउत्थं वयं उववत्था । दोन्निऽतिरित्ताइं सद्धिं चउत्थयाणि काऊ सदाणा कालगया समाणी सोहम्मे कप्पे देवी जाया महड्डिया । कणयसिरी संसारं भमिऊण अहं मणिकुंडली विज्जाहरो जातो । कणगलया पउमलया य संसारं १ इंदुसेणबिंदु° क ३ गो० । एवमग्रेऽपि ॥ २ रेतून सम° शां० ॥ ३त्ति कालकूडभा' शां० ॥ ४ मुया क ३ ॥ ५ 'डलो ना० शां० विना ॥ ६°णचंद वंदिरं पुं० क ३ गो० ॥ ७-८ हिम° क ३ गो० ॥ ९ °ण अणसणादाणे काल क ३ गो० ॥ १० °डलवि० शां० ॥ व० [हिं० ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only 20 www.jainelibrary.org

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