Book Title: Vasudevhindi Part 2
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 75
________________ महिसचरिए नरयसरूवं] सत्तरसमो बंधुमतीलंभो । २७१ दीहकालं । संचरमाणेण नारतो नारतेण छिक्को मुणेज 'अण्णे व एत्थ सन्ति' ति तिमिरगहणे, अहवा सद्देण भेरवेण, जिणाणं जम्मण-निक्खमण-केवलुप्पत्तिकालजोगे सुभपोग्गलपरिणामपकासिए जगे वा पस्सेज अण्णमण्णं । अहवा ओहिविसरण पस्सिऊण परोप्परं पुबजम्मसुमरियवेराणुसया य पहरणाई सूल-लउड-भिंडमाल-णाराय-मुसलादीयाणि विसरुबिऊण पहरंति एक्कमेकं, पहारदारियसरीरका मुच्छिया खणेणं पुणो वि साभाविया 5 जाया नहेहिं दंतेहिं चेव पीलयंति सारयंता कुद्धा पोराणयाणि वेराणि पावकम्मा वहिंति अण्णोण्णमरिसंतिपलित्तदेहा । असुरा परिधम्मिका य परवहणाहरिसिया नेरइयावासमतिगया कीलणानिमित्तं पयत्तंति-मंसप्पीए बहुविहं कप्पंति य कप्पणीहिं, कप्पिया समंसलोले भज्जति य तत्ततउ-कलहोय-रसायणकाई(इ)रसएसु पुवसत्तिं वहिंति; वहए य फरुसवयणेहिं साहयंता दुक्खाई दृट्ठा कोहत्तयकलसामलितिक्खलोहकंटयसमाउलं कलकलेंता10 कलुणं विलवंति, विलवमाणा कति वालया; आरसंते वेयरणिं(णी) खारसलिलभरियं सहरियदुमरम्मतीरदेसं वेयरणिं दसयंति, बेंति य–'पिबह जलं सीयलं ति, तो छुहंति णे पुब(ग्रन्थानम्-७७००)दुक्कया गमणदुब्बले तुहिमुबहता; असिपत्तिवणं च नयणसुभगं असिपत्तासुरविणिम्मियं उवइसंति, सलभा य दीवसिहमिव कत्थइ तिक्खाऽसी-सत्तिएसु परियत्ति पत्तं, खणेण य होइ पविसमाणाणं तेसिं दुक्खाभिघायकरणं, मारुयालियपलासपवडं-15 तछिण्णगत्ता विरसं कंदति सरणरहिया, जे इहं जीवं सुनिद्दया पहरंता य आसि; अवरे साम-सबले एगजाणढंक-कंके उप्पाएऊण घोररूवे अंछवियच्छि करेंति, 'तायह सामि ! त्ति जंपमाणे लोलेंति कलंबुवालुकायां, डहति आलीवके व वेउधिए य जलणे[*ण*] पहसमाणा; परदाररती य अग्गिवण्णाहिं महिलियाहिं अवयासेज्जति निरयवालमतिनिम्मियाहिं ॥ __एवं च नरयाणुभावं सुणमाणो मिगद्धओ कुमारो 'कत्थ मण्णे मया एरिसं अणुभूय-20 पुवं दुक्खजालं ?' ति आकंपियसबगायगत्तो उद्बुसियरोमकूवो मग्गण-गवेसणं कुणमाणो तयाऽऽवरणखयोवसमेण समुप्पण्णजातीसरणो वट्टमाणमिव मण्णमाणो मुच्छिओ, मुहुत्तमेत्ता सत्थो अमचं भणति-अज! तुझे कहं जाणह 'एरिसो नरयाणुभावो' ? । सो भणइ-कुमार! आगमेण. सो पुण पञ्चइयो वीयरागोवएसो त्ति. जो सरागो दुट्ठो मूढो वा सो कज्जसाहणणिमित्तं सच्चमऽलियं वा भणेज्ज, अण्णाणयाए वा. जो पुण विगयराग-दोस-25 मोहो विमल-विउलणाणी कयकज्जो सो परोवएसो(सं) निरामिसं कुणंतो सबमणवजं असचमोसं सच्चं भासिज्जा, न सूरियाओ तमसंभवो । ततो भणइ. इह आसि अरहा सबन्नू सबदरिसी य नमिणामा विणयपणयसुरा-ऽसुरच्चियकमकमलो। तेण भयवया केवलेण नाणेण सुदिट्ठो चउगइओ संसारो कहिओ-नेरइयगती तिरियगती मणुयगती देवगइ त्ति । एत्थ जम्मण-मरण-रोग-सोग-वह-बंधबहुले संसारे अणिवारियाऽऽस-30 वदुवारो जीवो कसायवसगो जहा परीति जिणभासियाऽमयपाणमलहंतो, जेहिं हेऊहिं, जा १ परध शां. कसं० ।। २ °सप्पिए ली ३ ॥ ३ कोहणय शां० ॥ ४ ति निजंति नि° शां० विना ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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