Book Title: Vasudevhindi Part 2 Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 73
________________ भद्दगमहिसस्स य चरियं] सत्तरसमो बंधुमतीलंभो । २६९ पयाहिओ' त्ति पकासो । कुणालेसु तम्मि चेव काले अणेयकोडिधणवई पउरजणसम्मओ रणो जियसत्तुस्स सरीरभूओ कामदेवो नाम सेट्ठी। __ सो य किर कयाइ पढमसरयकाले सालिवणाणि निबद्धसारकणगकविलकणिसभरवामणाणि, पउमसरे विकयारविंदमयरंदलोलछच्चरणमुदियमुणुमुणमणहरसरे पस्समाणो, कमेण पत्तो नियगगोहें पक्कीलमाणतण्णगगिट्टिहुंवरपाणुणाइयगोवीजणमहुरगीयसागरगंभीरतर-5 सणोवसूइज्जमाणत्थाणं । तत्थ य कुसुमधवलियस्स महुकररुयमहुरपलाविणो सत्तिवण्णपायवस्स समीवे हितो दंडगो य गोकुलाहिगारनिउत्तो उवगतो णं । ततो तस्साणुमए ट्ठियाणि । तंदुसमंडवासीणस्स उवणीयं गोवेहिं वयजोग्गं भोयणं । भुत्तभोयणो य कामदेवो दंडगेण सह गो-माहिसं कहेमाणो अच्छइ ।नाइदूरेण एक्को महिसो अतिच्छमाणो दंडएण सहाविओ-भद्दग! एहिं सिग्धं. मम तव य सामि आगतो. उवसप्पसु णं ति । सो य 10 महिसो वयणसममुवगतो सिट्ठिसमीवं । दरिसणेण भयकरो जणस्स । सेट्ठिपासवत्तिणा दंडकेण भणियं-भद्दको एस,मा संकह त्ति । ततो सो महिसोपडिओ जाणूहिं सिरेण य पसारियजीहो। कामदेवेण य गोवो पुच्छिओ-किं एस महिसो पडिओ?. जइजाणसि तो कहेह त्ति । सो भणति-सामि! एस मरणभीरू, साहवएसेण मया दत्तमभयं. इयाणि तुब्भे मग्गइ त्ति । सेट्टिणा य चिंतियं-तिरिओ एस वराओ जीवियप्पिओ अवस्सं जाई-10 सरो होज'त्ति चिंतिऊण भणिओ--भद्दय! निवससु वीसत्थो गोउले, ण ते भयं ति । ततो उढिओ महिसो जहासुहं विहरइ वणे। ___कइवाहेण य सेट्ठी नयरं पत्थिओ । भद्दगमहिसो य तं नाऊण पच्छओ वञ्चति । निवारेति णं सेट्टिकिंकरा । भणिया य सेहिणा-एउ भदओ. जइ अहिप्पेयं मया सह नयरं आगच्छउ. परिपालेह णं, मा णं कोइ पीलेहिइ त्ति । पत्तो य कामदेवो कमेण य 20 णयरं । गिहागएण य संदिट्ठो कोडंबी-जा वल्लहस्स आसस्स वित्ती तं भद्दगस्स वि देजाहि अवियारिय-न्ति । निवसइ य सेट्ठिभवणे भद्दगो अबद्ध-रुद्धो अयंतितो । अण्णया य 'सेट्ठीरायकुलं वच्चइत्ति सुयं भगेण । तओ पच्छओ पहाविओ सेटिस्स । उविग्गो य लोगो भणति-एस जमो महिसरूवी दूरओ परिहरियो त्ति । पत्तो य कामदेवो रायदुवारे य । पडिहारेण पुरिसा संदिहा-निवारेह महिसं ति । ते सिटिणा 25 निवारिया-भद्दओ एस, पविसउ, मा णं निवारेह त्ति। पविट्ठो य चक्खुपहेण पडिओ रण्णो मुद्धाणेण । सेट्ठी कयप्पणामुहिओ राइणा पुच्छिओ-किं एस महिसो एवं ठिओ? त्ति । ततो सेविणा भणियं-एस तुब्भे अभयं मग्गइ भद्दयमहिसो । रण्णा विम्हिएण णिज्झाइओ, भणिओ य-अच्छरियं एयं तिरिएस. भहय! दिण्णो ते अभयो, वच, वीसत्थो मम पुरीए सजणवयाए जहासुहं विहरसु त्ति । अमच्चो य संदिट्ठो-घोसावेह 80 पुरीए-जो दत्तअभयस्स भद्दयमहिसस्स अवरज्झत्ति सो ममं वज्झो जेवपुत्तो वि । तेण १ दूणमंडवासण्णिस्स शां० विना ॥ २ हिं चिरेण य पसायकामो। कामदेवे कसं० शां० विना॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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