Book Title: Vasudevhindi Part 2
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 77
________________ महामहिस्स य चरिय] सत्तरसमो बंधुमतीलभो । 'पइभयाण, पडिविसज्जेह मं । ततो राया भणति-परिणयवयो करेहिसि तव चरण, मुंज ताव भोगे त्ति । ततो भणति-नियमियजीवियकालाणं एयं जुज्जइ, न उ अणिञ्चयापहपडियाण. ताय! न कोइ पलित्तगिहनिग्गमे कालकमं ऽवेक्खइ, एवं दुक्खग्गिपलित्ते लोए सधनुदेसियं निग्गममग्गमुवलहिऊण न मे पमाएयव्वस्स कालो. तं विसज्जेह मं अपिलंबियं । ततो राया अविकंपं तं तवस्सि मुणेऊण मिगद्धयं भणति-पुत्स! जई एवं मिच्छो । ततो ते निक्खमेणसक्कारं करेमि, ततो मे समाही भविस्सत्ति। ततो भणति कुमारो-लाय! न मे सकारे पहरिसो, न वा सरीरभेए विसादो। ततो राया भणति-'पुत्त! इक्खागाणं एयं उचियं चेहियं' धम्माहिगारे ठियं मम चित्ते. पुत्त! तुमं वीयरागपहमबतिण्णो तेण न विसेसो पूया-निंदासु, तह वि पुण करिस्सं ते सकारं ति । ततो णेण संदिहा कोडंबी-खिप्पं उवणेह पुरिससहस्सवाहिणीं सीयं, हाय-पसाणविहिं च कुमा-10 रस्स त्ति । तेहिं जहासंदिट्ठमणुट्टियं । ततो कणय-रयय-भोमेजकलसहसएण ण्ह विओ, यत्था-ऽऽभरणेहि य भूसिअंगो कढकम्मपुरिसो विव सिविगं च विमाणसरिसिं विलइओ, सीहासणे निवेसाविओ, समूसवियकणयदंडधवलछत्तो, उभयपाससंपयंतचामरजयलो ये पिउणा सपरिवारेण अणुगम्ममाणो, पुरिजणेण य णयणुप्पलमालाहिं समणुबज्झमाणो, पासायतलगयाहिं य वरजुवतीहिं 'सुपुरिस! धम्मे ते अविग्धं भवउ' त्ति पुप्फबुट्ठीवि-15 च्छाइजमाणो, तुरियनिनाएण दस दिसाओ पूरयंतो, रण्णो संदेसेण भूसण-वसणवासं अविम्हिओ पस्समाणो, कमेण णिग्गतो णयरीओ संपत्तो पीइकरमुज्जाणं । तं च वसंतो इव उवगतो। सीमंधरस्स अणयारस्स य चक्खुफासे अवइण्णो सिबियाओ। ततो जियसत्तुणा रण्णा तिगुणपयाहिणपुवं वंदिऊण सीमंधरस्स दत्ता सीसभिक्खा । मिगद्धओ उ कयसामाइयनियमो य संजतो जातो। ___ राया कामदेवो य पउरवग्गो मिगद्धयकहापसत्तचित्तो अइगतो नयरिं । अमचो वि वंदिय साहवो गतो भद्दयसमीवं तस्स पकहिउ धम्म-सुणाहि भद्दग!, तुम भद्दगभावेण निरुविग्गो रण्णो(ण्णा) दत्ताभओ सच्छंद विहरिओ. चंडो पुण जो होइ सो इहलोए गरहिओ उवेयणिज्जो य दिट्ठो, जीवियं जीविऊण तेण रुद्दभावेण समुप्पजित्ता अमुहवेरो णरय-तिरियवासे दुहाणि विविहाणि अणुहवइ, तं उवसम कुमारस्स. तव निमित्तं 25 कमारो वीयरागमग्गमस्सिओ. सयंकडकम्माणुभावा वीसुं सबस्स जीवस्स पुत्वदुचरियसुकयविवागे दवं खेत्तं कालो भावो वा हेऊ भवइ 'अनिमित्तं न विपञ्चइ कम्म' ति. अरिहंता भयवंतो उवसमं पसंसंति, तं जइ सि दुक्खाण मुच्चि उकामो विगयामरिसो सारयसलिलपसन्नहिययो होहि । ततो अंसुपुण्णमुहो पडिओ अमच्चस्स सिरेण । ततो 'उवसंतो' त्ति जाणिऊणं अमच्चेण भणिओ-भद्दय! पंडियमरणं मराहि, ततो सोग्गतिगामी भवि-80 स्ससि. बालमरणेण जीवा मयों सकलुसा दुक्खबहुलं संसारं परियत्तंति. तुझं एरिसस्स १ काहिसि शा० ॥ २ °मणं स° ली ३ विना ॥ ३ सिबियं शां०॥ ४ भूसिओ क° शां० ॥ ५ ल्या अकुसला दु° शां० ॥ व. हिं०३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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