Book Title: Vasudevhindi Part 2 Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 30
________________ २२६ वसुदेवहिंडीए [ वेगवतीए बासघरे कुसुमेहिं सेतेहिं का वि देवया थविया जाए, कयमच्चणं । सुमणसा य उवगया णिसाए, ततो मं भणति-अजउत्त! अरिहह देवयासेसं मोदगा उवणीया । ते मया तीसे अणुमएण वयणे पक्खित्ता । तेहिं मे निवातं सरीरं, ठितो मणोसहावो । ततो मजभरियं मणिभायणं उक्खित्तं-पिब त्ति । मया भणिया-पिए! न पिबामि मजं गुरूहिं 5अणणुण्णायं ति । सा भणति-न एत्थ नियमलोवो गुरुवयणाइक्कमो वा देवयासेसो त्ति, पिबह, मा मे नियमसमत्तीए कुणह विग्धं, कुणह पसायं, अलं वियारेण । ततो हं तीए बहुमाणेण पीओ मजं । तेण मे निराहारदोसेण अपुव्वयाए य आरूढो मैतो। मयवसघुम्मंतलोयणेण य सरभसं समुक्खित्ता पिया सयणमारोविया, सो य से पढमपवियार इव मण्णंतो। सा य रयावसाणे उहिया । कओ य णाए वत्थपरियट्टो । निक्खित्ताणि खोमाणि 10 पुव्वपरिहियाणि नागदंतगे । निहागम-मयपरिवड्डीए सुमिणमिव पस्समाणो पसुत्तो म्हि । विहायरयणीय उवट्ठिया परिकम्मचा(का)रियाओ चेडीओ । ततो जहोचिए अहिकारे सज्जिन्ति, जा न किंचि विचारेइ, न वा से वल्लभेयरविसेसो । एवं च मे तीए सहियस्स वञ्चंति पमुदियमणस्स दिवसा केइ । अडरत्तकाले य पडिबुद्धो मि भोयणपरिणामेण । पस्सामि य दीवुज्जोएण फुडसरीरं 15 देवि अण्णमण्णरूवं । ततो सणियं सणिय उहितो मि चिंतेमि-का णु एसा मया सह अविण्णायाँ सयिया रूवस्सिणी ?, देवया होजी, तओ 'निमिल्लियलोयण' त्ति न देवया. छलेउकामा काइ पिसाची रक्खसी वा होज्जा? सा वि न होइ, रक्खस-पिसाया सभावओ रुद्दा भीसणरूवा य भवंति, पमाणाइकमंतबोंदिणो यत्ति, न एसा तेसु वत्तए. अहवा अंतेउराहि कॉयि निग्गया देवीणं निवेऊणं(?) अतिगया हुज ति। ततो णं आयरेण 20 पलोएमि । पसुत्ताए वि य से सयपत्तविगसियं सोम्मवयणं, केससमसहियकुसुमकुंचियकेसणिद्धा, वयणतिभागपाणं अणूणं तरु(र)णिरूवहयं ललाडं, पिहुल-दीहँ-धणुसम-भमरावलिसण्णिभा भमुहाओ,संमणासे अणुब्भडा-ऽसिय-कुडिलपम्हलाणि य णयणाणि, (??) उज्जकयेवंसवकडसरंधा णिडालायामोवयणमिव बाहुकामा णासा, पिहुलपिहुलपरिमंडलपुण्णया कपोला, मंसल-सुहुमविवरा समणा, दसणवसणसंवरिददसणजुगोपवित्ततुट्ठा बिंबफलस26 रसरत्ताऽधरोह्रवट्टा, वयणतिभागसमायोममंसलगरुलप्पकासा (??) । 'एरिसी सीलवती होति, एयारिसवयणसोहा ण एसा कामचारिणी, का णु एसा होज ?' त्ति चिंतेमि जं जं च से सरीरे । पस्सामि य से चलणे सरसकमलकोमलमंसलतले उद्धलेहालंकिए पसत्थलक्खणुकिण्णे । ततो मे मणसि ठियं-एसा धुवं रायदुहिया सव्वंगसुंदरी, ण एसा पावायारा-एवं चिंतेमि । सा य पडिबुद्धा भणइ-अजउत्त! कीस ममं अपुव्वमिव सययं १°सेसेति ली ३ ॥ २ मओ शां० ॥ ३ या भविया ली ३। या तइया शां०॥४ काय शां०॥५°णं मैरेजण कसं. शां. विना॥६ णं मणुणे (पणं)त. शां०॥ ७°हवरसम शां० विना॥ ८ सवणा से कसं. शां०। समणादव से मो० सं० गो ३॥९ यं वंस उ २ मे०॥१०"णिदाला शां० विना॥११ 'रिमुंडपु क ३ गो ३ ली ३ । रिमंडपु° उ० मे० ॥ १२ °यामंस शां. विना ॥ १३ गरवुप्पका । ए शां०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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