Book Title: Vasudevhindi Part 2 Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 54
________________ २५० वसुदेवहिंडीए [ वेगवतीए सकहाकहणं तुब्भे मयणवेगा मम नामेण आभट्ठा । सा रुट्ठा । मम य परितोसो परो जातो 'सुमरति मं सामि!' ति । सा उवकता । तयणंतरं विउविऊण अग्गि मयणवेगारूवधारिणी सुप्पनही घेत्तूण तुन्भे नीणेइ वहेउकामा । ततो हं भीया तीसे पलायमाणी, सा अहिंगविज्जा ममाओ, 'हा! सामी विहम्मइ'त्ति हिट्ठा पसारियकरा मि ठिया ।मुक्का तीए । धरतीए रोसेण आया 5 विजाए 'माणसवेगोत्ति दीसामि । 'दास माणसवेग! सामि मे हतुं इच्छसि'त्ति मोत्तूण तुम्हे पहाइ मं । अहमविभीया पलायमाणी जिणघरं [*लंघणाइमुही*] सरणमहिलसमाणी अपत्ता जिणघरं गहिया तीए पावाए हया। 'जहिच्छयं भत्ताररक्खणुज्जए होउ इयाणिं' ति विज्जाओ अक्खेऊण गया गुरुगुरती। ततो हं घायं विज्जाहरं (रणं) च अगणेमाणी 'सामी मण्णे कहिं ? किं वा पत्तो वि होज ?' ति तुम्भे मग्गमाणा तं दिसमणुसरमाणी परिब्भ10मामि रोयमाणी। ण मे पाणे भोयणे वा आसा । ततो आगासे वायं सुणामि-एस ते सामी छिण्णकडगाओ पडइ, मुय सोगं ति। ततो मया गहिओ भत्थको उवगयाय इम पएसं, आणीओ दुगुणयरसंजायदुक्खाए। विजापभावो य मि णाह ! अजप्पभिई नत्थि । __ततो मु पंचनदीसंगमासणं आसमपयं गयाइं । पिया धरणिगोयरी जाया । वरुणो दियं च पुलिणं दहपंतीओ ओगाहेऊण ण्हायाणि कयसिद्धपणामाणि उत्तिण्णाणि । तत्थ 15 य सादूणि फलाणि गहियाणि मया । ततो पासियाणि दुवग्गेहिं वि । पीओदगाणि आयं ताणि पस्सामो' दुमगहणविभूई तणाणं । पुण्णाग-पणस-नालिकेर-पारावय-भवगय-णमेरुए दरिसेमि वेगवतीए सोगविणोयनिमित्तं । ततो बंधवजणमज्झगया विव रिसिसमीवे रयणिमइवाहइत्ता कल्लं दिवसकरकिरणजालपरद्धंधकारे निग्गया मु आसमपयाओ रिसीहिं विम्हियवित्थारमाणणयणेहिं दीसमाणाणि 'अवस्सं देवमिहुणमिमं कोऊहलेण माणु20 स्समुवगयाणि' त्ति पसंसिजमाणा । णिग्गयाणि रिसिथाणाओ पत्ता मु वरुणोदकं वेग वतिहिययविमलोदकं । रमणिजयाय तीसे पुलिण-दहसोहाणि पस्समाणाणि, सीमंनयरं(?) च विविहधाउकयंगरागं, गगणपमाणमिव मिणिउग्गयं, वरुणोदिकासलिलपक्खालिज्जपायं दूरं गयाणि । भणिया य मया वेगवती-पिए! न ते सोगो करणीओ विजाविरहियाई मुंति. सका इहं पएसे निरुस्सुएहिं कालं गमेउं. जत्थ वा भणसि तत्थ वच्चामो त्ति । ततो 25 भणति-सामि ! तुब्भ जीवियपरिरक्खणनिमित्तं चेहमाणीए विजापरिभंसो विमे ऊसवो. भारियाए भत्तुणो पाणेहिं वि पियं कायवं ति, एस लोयधम्मो. तुझं पासे परिवत्तमाणीए पयडो आणंदो त्ति ॥ ॥ वेगवइलंभो पन्नरसमो सम्मत्तो॥ वेगवडलंभग्रन्थानम्-११२-१३. सर्वग्रन्थानम्-७०७७-२. १ मोहिम शां० विना ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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