Book Title: Vasudevhindi Part 2
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 66
________________ वसुदेवहिंडी । [ कसाय-उवसमाणं खमणकिससरीरो विज्जाहरं विकुरुव्वियविमाणमज्झगयं देवमिवाऽऽगासेण वियरमाणं पासित्ता विहिओ 'जइ अत्थि मम नियम-बंभचेरफलं, तेण आगमिस्से भवे एवं वियरामि' त्ति कयनियाणो कालगतो वेयड्डे गगणवलहे नयरे वइरदाढ विजाहरस्स रणो विज्जुजिभा देवी विज्जुदाढो नाम दारओ जातो, विवडिओ कमेण विज्जाबलेणं 5 विज्जाहराहिवत्तं पत्तो । २६२ वजाउहो देवो य सव्वट्ठसिद्धाओ चुओ अवरविदेहे वीयसोगाए नयरीए संजयस्स रण्णो सच्चसिरीए देवीए संजयंतो त्ति पुत्तो जाओ । सिरिदामदेवो पुण चंदाभविमाणाओ चुओ तस्सेव कणीयसो जयंतो नाम जातो। संजतो सयंभुस्स अरहतो उप्पण्णनाणरयणस्स समीवे छिण्णसंसतो पवइओ गणहरो जाओ । 10 अण्णया य संजयंत जयंता सुयपुव्वजम्मा पव्वतिया । जयंतो य चरितमोहोदण पमत्तविहारी कालं काऊण एस धरणो जातो। संजयंतो पुण अहं अहिंगयसुत्त ऽत्थो जिण कप्पं पडिवन्नो डिमागतो विज्जुदाढेण अविमुक्तवेरसंताणेण इहाऽऽणीतो । एयं वैरकारणं ॥ सुणह य अवहिया-पव्यय - पुढविराइसेरिसको वाणुगा जीवा णरय- तिरियगईसु विविहाणि दुक्खाणि वेमाणा सुबहुं कालं किलिस्संति । वालुकाराइसरिसं च को मणुगया 15 मणुयगतिभागिणो भवंति । उदयराइसमाणकोवाणुगया देवगतिं पावेंति । विगयकोहा उण arratग्गा । तम्हा कोहो विसऽग्गिजालसमाणो हियत्थिणा दूरतो परिचइयो ति । चउबिहोय रोसो - पव्वयरातिसरिसा पुढविराइसरिसो वालुयारायिसरिसो उदयराजिसरिसोति । तत्थ सिलाए जा राई उप्पज्जइ सा असंधेया; एवं जस्स जंतुणो उप्पण्णो कोवो पडिकूलसद्दाइ विसयपसंगेण, पियविसय वियोगेण वा अलाभेण वा मणुष्णाणं 20 विसयाणं, विसयसाहणविधायके वा कम्मिइ सत्ते; सो जइ जम्मं, बहुणि वा भवंतराणि अणुसरइ सो पव्वयरातिसरिसो । सिणेहपरिक्खएण पुण पुढवीय वायाssa - सोसियाय जा राई समुप्पज्जत्ति सा बारस वि मासे तहाभूया चिट्ठत्ति, सलिल परिभुत्ता समीभवति; एवं जस्स कोवो समुप्पण्णो कालेर्णे मास-संवच्छरिएण उवसमति समतीए खमागुणे चिंतेमाणस्स परेण वा रोसदोसे कहिए सोऊण, 25 सो पुढविराइसमाणो । वालुकाए य जा पुण राई समुप्पज्जइ दंडादिकरिसणेण, सा पवणपणोलिया वि समीहविज्जा आ सत्तरत्तेग; एवं जस्स केणइ कारणेण रोसग्गी समुज्जलिओ मासद्ध-मास-संवच्छरपरिमाणेण वा पच्छाऽणुतानाओ य सिच्यमाणो विज्झायइ, सो वालुकाराईसमाणो । उदके पुण करंगुलि - दंडाकड्डिए जा राती समुत्पज्जति सा उत्पत्तिसमणंतरं समीभवति; एवं जस्स जाणगस्स कहंचि कारणमासज्ज रोसुग्गमो हवेज्जा, सो य सलि30 लबुब्बुओ इव तक्खणमेव विलयं वञ्चेज्ज, सो उदयराइसरिसो । जो पुण परस्स रुट्ठो " १ विज्जाजिली ३ विना ॥ २ ली० य० विनाऽन्यत्र - सरिसरोसाणुगा डे० । सरिसाणुगा क ३ गी ३ उ० मे० । °सरिसाणुरागा शां० ॥ ३°सकोवाणुगया ली ३ ॥ ४ ले वि मासवच्छराईण शां० विना ॥ ५ ° हो व जो ण ध शां० विना ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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