Book Title: Vasudevhindi Part 2
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 56
________________ २५२ वसुदेवहिंडीए [संजयंत-जयंताणं संबंधो संदिसति विजाहररायाणो-एस उप्पाओ विवड्डमाणो विणासाय णे हवेज, तं अविलंवियं गहियाउहा जमगसमगं पहणध णं, न भे पमाइयव्वं ति । ततो समोहा आवाहियविज्जा य उज्जयपहरणा ठिया पहंतुकामा।धरणो य नागराया अदिवाभगदेवविसजिओ(?) अट्ठावयपबयाभिमुहो पयाओ। दिहा अणेण विजाहरा तवत्था । रुसिएण य आभट्ठा-हे 5 रिसिघायगा! किं इत्थ इहाऽऽगया आगासगमणवडिया?, अविचारियगुण-दोसाण वो ण सेयं-ति भणंतेण अक्खित्ता विजाओ। उवगया विणएण नमियमुद्धाणा णागरायं भय. गग्गिरकंठा विण्णवेंति-देव! तुम्हं सरणागया वयं, सामिणो विजुदाढस्स संदेसेण अम्हे तवस्सिं वहेउं ववसिया. 'अयाणंत' त्ति साहरह कोवं. कुणह मो पसायं. कहेह, कस्स सयासे दिक्ख त्ति ? । ततो एवं विहेहिं वयणेहिं जाओ उवसंतरोसो पकहिओ सो 10 पण्णगाहिवो-भो! सुणहसंजयंत-जयंताणं संबंधो अत्थि अवरविदेहे अणेगसाउसलिलो सलिलावइविजओ । वीयसोगजणनिसेविया य वीयसोगा नयरी । तत्थ य पगासविमलवंसो" संजयो नरवती । तस्स सच्चसिरी देवी । तीसे दुवे पुत्ता-संजयंतो जयंतो य। सो य राया संयंभुस्स तित्थयरस्स समीवे 15 धम्मं सोऊण णिविण्णकामभोगो तणमिव पडग्गलग्गं रजं चइऊण निक्खन्तो सह सुएहिं सामण्णमणुचरति । अहिगयसुत्तत्थो, विविहेहिं तवोवहाणेहिं निजरियकम्मंसो, अपुवकरणपविट्ठो, घातिकम्मक्खएँ केवलणाणं दंसणं च लभ्रूण विगयविग्यो निव्वुओ। जयंतो य पासत्थविहारी विराहियसंजमो कालं काऊण अहं धरणो जातो । संजयंतो वि णवणवसंवेगेण णव पुवाणि अहीओ जिणकप्पपरिकम्मणनिमित्तं भावणाभावियअप्पा वि. 20 वित्तो विहरइ । तओ उत्तमेण वीरिएण वोसहकाओ तिविहोवसग्गसहो पडिमापडिवण्णो विजुदाढेण इहाऽऽणीओ, एस मे जेहो भाया । एवं कहयति धरणो॥ भयवओ य संजयंतस्स विसुज्झमाणलेसस्स अपडिवादिसुहुम किरियसुकज्झाणाभिमुहस्स मोहणीए खयं गए आवरणंतराए य उप्पण्णं केवलं नाणं । महेउं उवागच्छंति देवा विज्जाहरा य । देवं पुणरवि पुच्छंति-सामि ! साहह, किंनिमित्तं एसो साहू विज्जुदा25ढण इहाऽऽणिओ? त्ति । णागराया भणति-वच्चामु, कहेही भे भयवं चेव सबण्णू सवि सेसं ति । ततो उवगया विणएण पयक्खिणं काऊण आसीणा । मुणी मुणियसबभावो देवा-ऽसुर-विजाहराणं कहेइ मग्गं मग्गफलं च । जहा-अणाइसंसाराडविवत्तिणो विविहोवद्दवाभिहुयस्स सब्भावमजाणओ सुहेसिणो जीवस्स अरहंतेहिं भयवंतेहिं नाणाइसयदिवाकरप्पभापगासियसवभावेहिं सम्मत्त-नाण-चरित्तचिंधो मग्गो देसिओ। तं च कम्मलाघवजणि १ सामया आवा. शां. विना ॥ २ अहिहायगदेव ली ३ । अदिहाभागदेव शां०॥ ३ गति त्ति शां०॥ ४ जाइओ शां०॥ ५ °सो विजयंतो नर शां० ॥ ६ उ २ मे. विनाऽन्यत्र-सयंबुस्स ली ३ वा० ख० । सयंबुद्धस्स क ३ गो० ॥ ७°ए जाए के क ३ गो० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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