Book Title: Vasudevhindi Part 2 Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 57
________________ विजुदाढ-संजयंताणं पुन्वभवा] सोलसमो बालचंदालंभो । २५३ उच्छाहस्स भवियस्स पवण्णस्स विण्णायगुण-दोसस्स कुपहपरिचाइणो चारित्तसंबललाभेण णिच्छिण्णसंसारकतारस्स परिणिट्ठियकम्मस्स निवाणपुरसंपत्ति मग्गफलं ति।। एत्थंतरे विजाहरा पणया पुच्छंति-भयवं! किं कारणं ति विज्जुदाढेण तुब्भे इहाssणीया। ततो भणति केवली-राग-दोसवसगस्स जंतुणो पयोयणवसेण कोवो पसादो वा भवइ. वीयरायभावयाए य पुण मम उभयमवि नत्थि. तेणं भणामि एयस्स मम य वेरा-5 ऽणुबंधो त्ति । विज्जाहरेहिं भणियं-कहं । कहेइ जिणोविजुदाढ-संजयंताणं पुवभविओ वेरसंबंधो आसी य इहेव भरहे वासे सीहपुरे नयरे राया सीहसेणो नाम । तस्स रामाजणपहाणा अकण्हा मणंसि रामकण्हा नाम भारिया । पुरोहितो पुणो से हितो सिरिभूई नाम । तस्स घरिणी पिंगला नाम । एएण सह नरवती पसासति रज्जं । ___10 कयाई च परमिणिखेडनिवासी भद्दमित्तसत्थवाहो पोएण समुहमवगाहिउकामो पत्तो सीहपुरं । चिंतियमणेण-पञ्चवायबहुलो समुद्दसंचारो, न मे सेयं सबं सारं गहेऊणं गंतुं. विण्णायपच्चए कुले निक्खिवामि । उवलद्धो अणेण सिरिभूई पुरोहितो।समुदाचारेण उवगतो। विण्णविओ य णेण कहिंचि पडिवण्णो । मुद्दितो निक्खित्तो निक्खेवो। वीसत्थो गतो सत्थवाहो, पत्तो वेलापट्टणं, सजिओ पोतो, कया पूया । समुद्दवायाणुकूलेण पट्टणा पट्टणं 15 संकममाणो असंपुण्णजणमणोरहो विव संपत्तिं संपत्तो वाएरियजलबुब्बुओ इव विलीणो पोतो । फलहखंडेण वुज्झमाणो कहिंचि कूलमणुपत्तो । कमेण सीहपुरमणुपविहो । अइगतो य पुरोहियस्स भवणं । णो णं पञ्चभिजाणति कलुसमती सिरिभूई । बहुप्पयारं लालप्पमाणस्स न पडिवज्जति । निब्भत्थिओ य णेण रायकुलमुवढिओ । तहेव दुवारमलभमाणो पइदिवसं रायकुलदुवारे 'पुरोहितो मे नासमवहरई' विकोसयति । पुच्छिओ रण्णा सिरि-20 भूती-किमयं? ति । भणति-सामि! वीसरियचित्तो पलवति एसो. जाणह मम तुब्भे जहाविहं विपुले वि अत्थसारे पञ्चप्पिणामि त्ति । ततो अलद्धपसरो विलवमाणो परिब्भमति, अभिक्खं च विक्कोसेति रायदुवारे-परित्तायह ममं ति । तं सुणमाणेण सीहसेणेण मंती सदाविओ, भणिओ य-जाणह एयस्स एयं कजं ति । तेण रायसंदेसेण नियगघरं नीओ पुच्छिओ य । लिहियं से वयणं, संभोइओ य । कइवाहेण पुच्छिओ ताहे 25 आइक्खति । सुबुद्धिणा निवेइयं रण्णो–अत्थि एयं कारणं ति । राया भणति-केण उवाएण साहिज्जति ? । मंतिणा विण्णवियं-सामि! तुम्हे सिरिभूइणा सह जूयं पजोजित्ता मुद्दापरिवत्तणं कुणह. केणइ य ववएसेणऽब्भंतरोवत्थाणमइगया निउणमती पडिहारं पुरोहियघरं पेसेह मुद्दाहत्थगयं. तेण य संगएण संदेसेण असंसयं पुरोहियभजा निक्खेवं दाहिति त्ति । रण्णा जहाभणियमणुट्ठियं । भद्दमित्तो समक्खं पुरोहियस्स विक्कोसमाणो: कयत्थो जाओ रण्णा णिक्खेवेण । सिरिभूती य निवासिओ नयराओ, किलिस्समाणोरोसविसं अविमुंचमाणो कालगतो अगंधणो सप्पो जातो। १°तीए पटिहारि पेसेह शां०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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