Book Title: Vasudevhindi Part 2 Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 29
________________ धारिणीए वेगवतीए य परिणयणं ] तेरसमो वेगवतीलंभो । २२५ न दाहिति ?. धुवं हिया केणइ रूवलुद्धेणं मंदमतिणा तीसे सीलसारं अजाणमाणेणं 'ति । एवं ठिया बुद्धी, तह वि मंदमोहियं मणे ठियं मतीपुत्वविरहकिते सही (?) अवकासे पमयवणे सहिगिहे पमग्गामि 'तग्गयमणसा परिहासेण न मे देति पडिवयणं । तो ण अपस्समाणो वि बाहपडिरुद्धलोयणो लता-जालघर-कयलीघरगयं पुरओ कीलोउवडियं च पस्सामि, आभासामि य-पिए! किं सि कुविया ? अहं तव छंदाणुवत्ती. मा बाहसु, 5 कीस निलुक्का सि ?-त्ति जंपमाणो परिमि एते पएसे । चेडीओ य मं तहागयं जाणंतीओ 'पियं भणंतीओ अंसूणि विधरमाणीओ णाणाविहेहिं वक्खेवकारणेहिं रमावेउमिच्छंतीओ खणं पि न विरहेंति । न य मे सोमसिरीगयचित्तस्स परमायरनिमित्तेसु वि रूवेसु सज्जति मणो, न गीय-वाइय-पढिएसु, न य भोयणमभिलसिउमिच्छहे । मम वि य आहारमणिच्छमाणे परिजणो राया न भुजति । सुण्णं मिव भवर्ण मन्नमाणो ण रत्तिं निद्दावस-10 मुवेमि । एवं चिंतयंतो मूढयाए पुरओ अणच्छमाणिं पि अच्छमाणिं पस्सामि सहसा । एवं मे विसुरमाणस्स गया दो वि दिवसा । ततियदिवसे य किंचि दिवससंजीविओ सोमसिरिगहियहियतो 'असोगवणियाए तीए सह रमितपुवे अवगासे अवस्स मे विणोओ होहिति' त्ति भणंतो पस्सामि पियं पसण्णमुहिं । उवगतो से समीवं, हरिसवियसियच्छो नेमि णं-सुंदरि! कीस सि कुविया अकारणेण ?, पसीय, मा मे अदंसणेण 15 पीला होहिति. एसा ते अंजली, मुयसु को ति । सा भणति-अज्जपुत्त! नाऽहं तुर्भ कुप्पिस्सं. सुणह पुण कारणं, जेण मे तुभं परिजणस्स य दंसणं न दिणं-मया पुवसुओ नियमोपवासो, तत्थ य मोणेण अच्छियवं, सुप्पियस्स वि जणस्स न देयवो आलावो, सो य मे पुण्णो तुज्झ चलणपसाएण. तन्नियमरक्खणपराय संजमेण सेवियवं, तत्थ न तुम्हेहिं छलो गहेयवो । मया भणिया-पिए! न ते अवराहो दइयजणखलिए, भणसु किं कीरउ ?20 त्ति । भिणति-] एयम्मि वतके विवाहकोउयं कम्म सब काय, वतउजवणं एवं ति । मया भणिया-कीरउ सबं, जं आणवेसि त्ति । निवेदियं रणो पियं देवीए य-दिहा कुमारि त्ति । सन्जिय चाउरंग, दुव्वा-दब्भ-सिद्धत्थकादीणि य मंगलाणि । ततो सयमेव अणाए हुयवहो कणयकलसा य वारिभरिया दिसासु हविया । ततो पगीयाणि मंगलाणि चेडीहिं । कलसा य णाए सयमुक्खिविऊणं अप्पणो मम य उवरिं पल्हत्थिया ।25 विहसमाणी य भणति-सुणंतु लोगपाला सोम-जम-वरुण-वेसमणा, उववणदेवयाओ, परिजणो य-अहं अजउत्तस्स भारिया, अजप्पभितिं मम एसो देवयं, पभवति जीवितस्स । मया वि वरनेवत्थिएण व वहुवेसाए गिहिओ से दाहिणहत्थो पसत्थलक्खणो । परिगतो अग्गि । उवगतो मि जहा सगिह। संदिट्ठा य णाए दासचेडीओ-उवणेह मोयगसरावाणि मज्ज-पुप्फ-गंधं च । ताहि य वयणसमं उववियं । ततो संवरियदुवारे 30 १ सगि शां. विना ॥ २ लापुवटि उ २ मे०॥ ३ किमिव कु ली ३॥ ४ °मातर शां० ॥ ५ णं पिव शां० ॥ ६ यध्वं सणिहियस्स ली ३॥७स्स वि तस्स ली ३ विना ॥ व०हिं० २९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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