Book Title: Vasudevhindi Part 2 Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 40
________________ वसुदेवहिंडीए [सुमोमाचकवहिसंबंधे जीवा-ऽजीवो, दुवालसविहं सावयधम्म अणुपालेऊण, उवासगपडिमाओ य एकारस, कालं काऊण अच्चुए कप्पे देवो जातो। तेसिं च नंदिस्सरमहिमाए समागमो जातो। सो अच्चुओ देको विउलोहिनाणी वइसानरं देवं दटूण मित्तभावं अणुसरेंतो भणति-भो वइसानर! जाणसि ममं ? ति । सो भणति-देव! का मे सत्ती तुम्भेऽहिजाणिउं? ति । तेण भणिओ5 अहं धनंतरी तव वयंसो सावयधम्ममणुपालेऊण अञ्चुए कप्पे देवो जाओ. तया तुम मे में सद्दहसि कहेमाणस्स, ततो किलिस्सिऊण अप्पड्डिओ जातो । सो भणति–तावसधम्मो पहाणो न मया सुह कओ, तेण अहं अप्पड्डिओ जाओ। अच्चुयदेवेण भणिओजो तुम्ह पहाणो सो परिच्छामहे । तेण जमदग्गी उद्दिढो। अच्चुयदेव-पइसानरदेवेहिं जमदग्गिपरिक्खणं । 10 तओ दो वि सउणरूवं काऊण जमदग्गिस्स कुञ्चे खडतणाणि छोण घरको कओ देवेहिं । सो उवेहत्ति । ततो माणुसीए वायाए सउणो भणति सउणी-भद्दे ! अच्छ तुम इहं, अहं ताव हिमवंतपवयं गमिस्सामि, अम्मा-पियरं दह्र पुणो लहुं एहति ।साभणति-सामि! न गंतवं, एगागिस्स कोइ ते पमाओसरीरस्स होज्जा।सो भणतिमा बीहेह, अहं सिग्घयाए जो विमे अहिभवति तं सत्तो वइकमि।सा भणइ-ममं विसरिजाहि,अण्णं वा सउणि परिगेण्हिज्जासि 15 त्ति. ततो हं एगागिणी किलिस्सिस्सं ति । सउणो भणति-तुमं सि मे पाणेसु पियतरी, तुम उझिऊण णाऽहं तेसिं थोवं पि कालं गमिस्सं ति । सा भणति-न पत्तियामि अहं, जहा पुणो तुम एसि त्ति । सउणो भणति-जहा भणसि तह चेव सवहेण पत्तियाविस्सं । सा भणति-जइ एवं तो एयस्स रिसिस्स जं पावं तेण संलित्तो होहि जो न पुणो आगतो सि त्ति । सो भणति-अण्णं जं भणंसि सवहं तं करिस्सं, न एयस्स रिसिस्स पावणं ति। 20 ततो जमदग्गिणा चिंतियं-सरणा ममं पावं गुरुयं भासंति. पुच्छामि ताव णे। ततो णेण गहियाणि हत्थेहिं, भणिया य-अरे! अहं बहूणि वाससहस्साणि कोमारबंभयारी इहं तवं करेमि, केरिसं मम पावं? जं तुमं न पडिच्छसि सवहे । ततो सउणेण भणिओमहरिसि! भवसि न विवाडेउं ति. तुमं पुण अणवच्चो छिण्णसंताणो तरू विव नइतडुज लसलिल वेगधूअमूलसंघाओ निरालंबणो कुगतीए पडिहिसि. नामपि ते कोइ न याणाहिति. 25 एयं ते किं थोवं पावं ?. अण्णे रिसी न पस्ससि किं सपुत्ते ?. चिंतेहि वा समतीए त्ति। ततो सो अप्पागमत्तणेण अविण्णायबंध-मोक्खविही चिंतेति-सञ्चं, अहं अणवच्चो निस्संताणो त्ति । मुक्काणि णे अरण्णाणि, ततो दारसंगहरती॥ ___ तं च भग्गं नाऊण अच्चुतो देवो वेसानरं भणति-इदाणि जो अम्ह समणोवासओ तं परिच्छामो त्ति । 30 अच्चुपदेव-वइसानरदेवेहिं पउमरहपरिक्खणं ____तम्मि य समए मिहिलाए नयरीए पउमरहो नाम राया । सो वसुपुज्जस्स अणगा १ भाय वईक ३॥ २ महेसी! भ° शां० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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