Book Title: Vasudevhindi Part 2
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

Previous | Next

Page 27
________________ तप्पुवभवो य] बारसमो सोमसिरिलंभो। २२३ वयणेहिं य तकालजोग्गेहिं भूसण-सयणेहिं पीतिमुवजणेमाणी, तेण विसजिया सयं कोंकणवडेंसगमुवेमि । एवं च बहूणि पलिओवमाणि मे गयाणि अम्मो ! तेण देवेण लालिजंतीए दिवसो विव। ___ कयाइं च धायइसंडदीवपुरिच्छिमद्धे अवज्झानयरीए मुणिसुवयस्स अरहतो जम्मणमहे समागया देवा, अहं च पियसहिया । निवत्ते महे तम्मि चेव समए धायइसंडेदी-5 वपच्छिमद्धे दढधम्मस्स अरहओ परिनेवाणमहिमं विहीए देवा काऊण नियगावासं पडिगया । अहमवि महासुक्काहिवसामाणियदेवसहिया पत्थिया महासुकं कप्पं । अंतरा य बंभलोयकप्पे रिट्ठविमाणपत्थडसमीवे लोगक्खाडगमझे इंदधणुरागो विव खणेण सो मे हिययसामी विणट्ठो । ततो निरालोगा दिसा मे जाया, पडिहया उड्डगती । ततो विसण्णमणसा य कत्थ मण्णे पिओ गतो सुहुमसरीरो होइऊण?' तं चुतं पि सिणेहेण अविंदमाणी 10 णियत्ता गयाऽऽयमग्गे अण्णेसमाणी तिरियलोए पत्ता जंबुद्दीवगउत्तरकुराए भद्दसालवणे मज्झदेसकूडभूयं जिणाययणं । तत्थ य सोगवसगया वि जिणपडिमाकयप्पणामा एगदेसे पस्सामि पीतिकर-पीतिदेवे चारणसमणे विउलोहिनाणी । ते वंदिऊण पुच्छिया मया-भयवं! कत्थ मण्णे मे नाहो गतो? कया वा तेण सह समागमो होज ? त्ति । ते बेंति-देवी ! सो ते देवो परिक्खीणसत्तरससागरोवमहिती चुओ मणुस्सो आयाओ. तुमं 15 पि चुया रायकुले महापुरगस्स सोमदेवस्स रण्णो दुहिया होहिसि. तत्थ य तेण समागमो होहिति. गयदसणपहमुवगयं जीवियसंसए परित्ताहिति सो ते भत्त-त्ति तेहिं कहिए गया सविमाणं । ततो हं तम्मि देवे पडिबद्धरागा केणइ कालेण चुया इहाऽऽयाया, समणणाणुप्पत्तीय समागयदेवुज्जोएण समुप्पण्णजातीसरणा[मुच्छिया। सत्थाए य मे चिंता जाया-मम पिउणा सयंवरो दिण्णो, समागया य रायाणो, न मे सेयं संलावे, कयं 20 मे मूयत्तणं । ततो पडिगएसु राइसु 'साहुसंदेसं पडिवालेमाणी अच्छामि' एवं चिंतेऊण मूअत्तणमवलंबामि, 'तेण य विणा किं मे उल्लावेणं?' ति ॥ एवं च कहिए मया भणिया-पुत्त ! सोक्खभागिणी होहि, समागमो य ते होउ पुवभवभत्तुणा पिययमेण सह त्ति । ततो मे अज्ज गयमुहाओ राहमुहाओ विव चंदपडिमा विणिग्गया संती गिहागया कहेइ पच्छण्णं-अम्मो! सो मे अज्ज दिह्रो पुवभविओ भत्ता; 25 तेण मे जीवियं दिण्णं, जो साहूहिँ कहिउ त्ति । ततो मया अहिनंदिया-पुत्त ! कओ ते देवेहिं पसाओ. कहेमि ते रण्णो देवीए य, ततो ते मणोरहसंपत्ती अजेव भविस्सइ त्ति । एवं आसासेऊण गया देविसमीवं, राया वि तत्थेव सण्णिहितो। कयउवयाराए मे कहियं तेसिं कारणं, तीसे जातीसरणं । तेणेव से जीवियं दिण्णं' ति सोऊणं रण्णा पूइया । भणियं च णेण-धम्मओ जीवियदाया सो चेव सोमसिरीए पभवइ, मया वि से सयं-30 १०हिं धिति शां० विना॥२°संडे चेव प° शां०॥३ उ २ मे० विनाऽन्यत्र-यवसणमुवली ३ । यदसणमुव क ३ गो ३ ॥ ४ °हिया ग° शां०॥ ५ पुत्तिके ! सो° ली ३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228