Book Title: Vasudevhindi Part 2
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 35
________________ पउमसिरिसंबंधो] चोहसमो भयणवेगालंभो। २३१ आसी । तस्स महादेवी सिरिकता सिरी विव कंतरूवा । तेसिं दुहिया पउमसिरी नाम । सा य जोवणत्था 'रूववति' त्ति विजाहरेसु पगासा।। दिवितिलगे य नयरे तम्मि य समए वजपाणी नाम राया विजाबलसमत्थो आसी । मेहणाएण य देविलो नाम नेमित्ती पुच्छिओ-पउमसिरी रण्णो कस्स देय ? त्ति । तेण एवंपुच्छिएण आभोएऊण एवं आएसो दिण्णो-एसा रायकण्णा चकवट्टिभारिया 5 पहाणा भविस्सति त्ति । ___ कयाई च वजपाणिणा जाइओ मेहनाओ-मे देहि कण्णं, ततो ते सोहणं भविस्सति त्ति।सो य आएसबलेण ण देइ । ततो वजपाणिणा बलवया बाहिजमाणो 'ण एस चक्रवट्टि त्ति ण देमि दारियं । तेण जुद्धेण पराजिओ सबल-(ग्रन्थाग्रम्-६५००)वाहणो सबंधुवग्गो निग्गओ इमं पवयं आगतो, दुग्गबलेण वसति किंचि कालं सपरिवारो। 10 दाहिणसेढीए य बहुकेउमंडियं नाम नयरं । तत्थ य राया वीरबाहू नाम, तस्स य सुमणा नाम महादेवी, तीसे चत्तारि पुत्ता-अणंतविरिओ चित्तविरिओ वीरज्झओ वीरदत्तो। ततो सो राया हरिचंदसमीवे धम्मं सोऊण, जहा-जीवा अणादिसंताणकम्मसंकलापडिबद्धा राग-दोसवसगया संसारं चउविहं जम्मण-मरणबहुलं पातिकम्मलहुयाए अरहंतवयणं सव्वमुदिकं सुइप्पहागयं रोइत्ता विरागपहमुवगया, सिह 15 बंधणं विसयकयं नलिणीतंतुबंधणमिव दिसागओ छिंदिऊण संवरिया-ऽऽसवा, संजमे तवे संजमियो य कयपयत्ता, पसत्थज्झाणरविपडिहयाऽऽवरणविग्घतिमिरा, पच्चक्खसबभावा सासयसुहभागिणो भवंति, भववल्लरीओ विमुञ्चति । एवं च सोऊण राया वीरबाहू पुत्ते अणंतविरियप्पमुहे रजेण निमंतेइ पञ्चइउकामो त्ति । ते णं भणंति निच्छिया-अलं रज्जेणं, तुब्भे अणुपबयामो। ततो वीरसेणस्स जसवतीसुयस्स रजसिरि दाऊण पबइओ 20 ससुओ पंचसमिओ तिगुत्तो कुणति तवं । ततो केणति कालेण वीरबाहू अणगारो विमुककिलेसबंधणो परिनिव्वुओ । इयरे वि कयसुत्त-उत्था चत्तारि मुणिवरा विसयसुहनिकंखा विहरमाणा इहाऽऽगया अमयधारं पश्वयं, नयरबहिया उजाणगिहे य ठिया थिरमतिणो । सेसिं च रयणीए धम्म-सुक्कझाणोवगयाणं कमेण पढमस्स एगत्तमवियारीज्झाणमइकंतस्स सुहुमकिरियमपत्तस्स मोहावरण विग्यविरहे केवलनाणं समुप्पण्णं, बितियस्स सुक्कज्झायिणो 25 मणपज्जवणाणं, ततियस्स सवियकविचारपढमसुक्कज्झाइणो ओहिनाणं, चउत्थस्स पढमगण विव झाणभूमीए वट्ठमाणस्स पयाणुसारी लद्धी समुप्पण्णा । तेसिं च अहासण्णिहिएहिं देवेहिं कया महिमा। सं च देवुज्जोयं पस्समाणो दिवतुरियनिनायं च सुणमाणो मेहणाओ राया परमेहरिसिओ सबजणसमग्गो वंदिउं गतो । पस्सय णे य तवसिरीए दिप्पमाणे सुहुए विव हुया-30 १°सत्तायक शां० विना ॥ २ रिं संकामेऊण शां०॥ ३ इयाऽऽ क ३ गो ३ । इओ आ° शां० ।। ४°यारं झा ली ३॥ ५ मरिसीणं सब्व शां० विना॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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