Book Title: Vasudevhindi Part 2 Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 34
________________ २३० वसुदेवहिंडीए [वसुदेवेण मयणवेगाए परिणयणं अतीए अहं ते समीवं एस्सं ति, पुण्णपुरचरणस्स य विजा सिद्धा भविस्सइ त्ति न संदेहो' सो गतो। अहं पि तेण निओगेण दिवसं गमे मि । संझाकाले य नेपुर-मेहलरवं सुइसुहमुदीरयंती का वि जुवती, उक्का विव दिप्पमाणी, णयणविलोभणं कुणमाणी य, पइक्खिणं काऊण ममं पुरओ ट्ठिया। पस्सामि य विम्हिओ-किमु देवया माणुसी वा होज त्ति भरण-वसणा?. उवज्झायभणिओ वा इमो विग्यो होज नवेचंदलेहा विक लोयणवीसामभूया? | चिंतेमि णं-एरिसी आगिती असुहाय न हवति, अहवा पुरचरणतोसिया विजाभगवती उवडिया होज त्ति । एवं च चिंतेमि, सा य कयंजली पणया भणति-देव ! इच्छामि वरमोक्खं तुन्भेहिं दिण्णं ति । मया चिंतियं-जा मग्गियवा वरं, सा ममं पणयति. नणु एसा सिद्धा चेव, देमि से वरं ति । मया भणिया-बाढं देमि त्ति। 10 ततो तुहाए पसण्णमुहीए णाए उक्खित्तो म्हि । नेइ मं आगासेणं । ओसहिजलंतसिहर स्स य सिहरिणो रणं कूडेक्कदेसं नीओ मि णाए खणेण । समे य सिलायले कुसुमभारनमिदसालस्स असोगपायवस्स हिट्ठा निक्खिविऊण गया ‘मा उस्सुगा होह' त्ति । मुहुत्तंतरेण य दुवे पुरिसा रूवस्सिणो जुवाणा उवगया, मम नामाणि साहेऊणं पणया। एको भणति-अहं दहिमुहो । बितिओ भणति-चंडवेगो त्ति । खणेण य उवज्झाओ उवगतो, 1.5 सो वि 'हं दंडवेगो' त्ति साहेऊण निवडिओ चलणेसु, सोभिओ य विविहाऽऽभरणप्प भाऽऽवरियदेहो गंधवकुमारो विव । तेहि य म्मि तुढेहिं आरुहिओ पवयं तत्थ य भवणसयसण्णिमहियं नयरं समूसियपडागं । पविट्ठो य मि रायभवणं । कयग्यपूओ य ण्ह विओ मंगलेहि, पवरवत्थपरिहिओ भुत्तो भोयणं परमसाउ । सयणीए पट्टतूलियऽच्छुरणे संविट्ठो, सुहपसुत्तो। पभायाए रयणीये कयं मे वरपडिकम्मं । सोहणे य मुहुत्ते मयणवेगाए मयण20 सरनिवारणभूयाए पहिढेण दहिमुहेण पाणिं गाहिओ विहिणा । निसट्टा य बत्तीसं कोडीओ, वत्था-ऽऽभरणाणि य बहूणि, मणुस्सलोगदुल्लहा य सयणा-ऽऽसण-भायणवि. कप्पा य कुसलसिप्पिविणिम्मिया, परिचारियाओ य उवचारकुसलाओ। तओ तीए रूववतीए गुणवतीए सहिओ भुंजामि भोए सुरकुमारो विव सुरवहुसहिओ । सेवंति णं विजाहरा । सुहासणगयं च सुमणसं जाणिऊणं दहिमुहो भणति-सामि! जं एत्थ मयणवे. 25 गाए वरमोक्खे जाइया, तस्स ताव अत्थं निसामेहपउमसिरिसंबंधो इहेव वेयड्ढे दाहिणाए सेढीए अरिंजयपुरं नाम नयरं देवपुरोवमं । तत्थ य राया पिउ-पियामहपरंपरागयं रायसिरिं [परिपालेमाणो] सजलमेघनाओ य मेघनाओ नाम १ किण्ह देशां० ॥ २ वयंद° उ २ मे० विना ॥ ३ पुन्वञ्च शां० ॥ ४ शां० विनाऽन्यत्र-दर्द उ० मे० । वरं दे क ३ गो० ॥ ५ सयमेव सि° शां० विना ॥ ६ सावे(धे)ऊ° शां०॥ ७ पसत्थव शां० ॥ ८ वासण शां०॥ ९ मिसपणो य सेजाए, दिषणाब. शां० ॥ १० वरं जाइओ शां० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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