Book Title: Vastusara Prakaran
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 190
________________ । १५४ ) पास्तुसारे ग्यारहवें श्रेयांसजिन और उनके यक्ष यक्षिणी का स्वरूप तथैकादशं श्रेयांसं हेमवर्ण गण्डकलाञ्छनं श्रवणोत्पन्नं मकरराशिं चेति । तत्तीर्थोत्पन्नमीश्वरयक्षं धवलवर्ण त्रिनेत्र वृषभवाहनं. चतुर्भुज मातुलिङ्गगदान्वितदक्षिणपाणिं नकुलाक्षसूत्रयुक्तवामपाणिं चेति । तस्मिन्नेव तीर्थे समुत्पन्नां मानवी देवीं गौरवर्णा सिंहवाहनां चतुर्भुजां वरदमुद्गरान्वितदक्षिणपाणिं कलशाङ्कुशयुक्तवामकरां चेति ॥ ११ ॥ श्रेयांसजिन नाम के ग्यारहवें तीर्थंकर हैं, उनके शरीर का वर्ण सुवर्ण वर्ण का है, खद्गी का लाञ्छन है, जन्म नक्षत्र श्रवण और मकर राशि है । __उनके तीर्थ में 'ईश्वर' नाम का यक्ष सफेद वर्णवाला, तीन नेत्रवाला, बैल की सवारी करनेवाला, चार भुजावाला, दाहिनी दो भुनाओं में बीजारा और गदा; बाँधी दो भुजाओं में न्यौला और माला को धारण करनेवाला है। उनके तीर्थ में 'मानवी' ( श्रीवत्सा) नामकी देवी गौरवर्णवाली, सिंह की सवारी करनेवाली, चार भुजावाली, दाहिनी दो भुजाओं में वरदान और 'मुद्गर, बाँयीं दो भुजाओं में 'कलश और अंकुश को धारण करनेवाली है ॥ ११ ॥ बारहवें वासुपूज्यजिन और उनके यक्ष यक्षिणी का स्वरूप ___ तथा द्वादशं वासुपूज्यं रक्तवर्ण महिषलाञ्छनं शतभिषजि जातं कुम्भराशिं चेति । तत्तीर्थोस्पन्नं कुमारया श्वेतवर्ण हंसवाहनं चतुर्भुजं मातुलिङ्गवाणान्वितदक्षिणपाणिं नकुलकधनुर्युक्तवामपाणिं चेति । तस्मिनेव तीर्थे समुत्पन्नां प्रचण्डादेवी श्यामवर्णा अश्वारूढां चतुर्भुजां वरदशक्तियुक्तदक्षिणकरा पुष्पगदायुक्तवामपाणिं चेति ॥ १२ ॥ वासुपूज्यजिन नामके बारहवें तीर्थकर हैं, उनके शरीर का वर्ण लाल है, मैंसा के लाञ्छनवाले हैं, जन्मनक्षत्र शतभिषा और कुंभराशि है। उनके तीर्थ में 'कुमार' नाम का यक्ष सफेद वर्णवाला, हंस की सवारी करनेवाला, चार भुजावाला, दाहिनी दो भुजाओं में बीजोरा और बाण को; बांयें दो हाथों में न्यौला और धनुष को धारण करनेवाला है । , प्रवचनसारोद्धार में पाश ( फांसी ) लिखा है । २ विपष्टि ग्रंथ में कुलिश ( वन ) लिखा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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