Book Title: Vastusara Prakaran
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 221
________________ नव ग्रहों का स्वरूप (१७३ ) उत्तर दिशा के स्वामी, हरे वर्णवाले, राजहंस की सवारी करनेवाले और पुस्तक हाथ में रखनेवाले बुध को नमस्कार । ५ गुरु का स्वरूप___ ॐ नमो बृहस्पतये ईशानदिगधीशाय सर्वदेवाचार्याय कांचनवर्णाय पीतवस्त्राय पुस्तकहस्ताय हंसवाहनाय च । ईशान दिशा के स्वामी, सब देवों का आचार्य, सुवर्ण वर्णवाले, पीले वस्त्रवाले, हाथ में पुस्तक धारण करनेवाले और हंस की सवारी करनेवाले गुरु को नमस्कार । ६ शुक्र का स्वरूप ॐ नमः शुक्राय दैत्याचार्याय माग्नेयदिगधीशाय स्फटिकोज्ज्वलाय श्वेतवस्त्राय कुम्भहस्ताय तुरगवाहनाय च । दैत्य के प्राचार्य, आग्नेयकोण का स्वामी, स्फटिक जैसे सफेद वर्णवाले, सफेद वस्नवाले, हाथ में घड़े को धारण करनेवाले और घोड़े की सवारी करनेवाले शुक्र को नमस्कार । ७ शनि का स्वरूप ॐ नमः शनैश्चराय पश्चिमदिगधोशाय नीलदेहाय नीलाम्बराय परशुहस्ताय कमठवाहनाय च । पश्चिम दिशा के स्वामी नील वर्णवाले, नीले वस्त्रकाले, हाथ में फरसा को धारण करनेवाले और कछुए की सवारी करनेवाले शनैश्वर को नमस्कार । निर्वाणकलिका के मत से इस प्रकार मतान्तर है ५ गुरु के हाथ में अक्षसूत्र और कुण्डिका माना है। ६ शुक्र के हाथ में अक्षसूत्र और कमण्डलु माना है । ७ शनैश्वर थोडे पृष्ण वर्णवाले, लम्बे पीले बाज वाले, हाथ में अक्ष सूत्र और कमण्डलु को धारण करनेवाले माना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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