Book Title: Vastusara Prakaran
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 250
________________ वास्तुसारे का योग होता है । अर्थात् कृत्तिका नक्षत्र, शनिवार और पंचमी तिथि; गहिणी नक्षत्र, बुधवार और दूज तिथि; मृगशिर नक्षत्र, सोमवार और एकादशी तिथि; आदो नक्षत्र रविवार और बारस तिथि हो तो अबला योग होता है। यह शुभ कार्य में वर्जनीय है ॥ ६२॥ तिथि और नक्षत्र से मृत्यु योग मूलद्दसाइचित्ता असेस सयभिसयकत्तिरेवहा । नंदाए भद्दाए भद्दवया फग्गुणी दो दो ॥ ६३ ॥ विजयाए मिगसवणा पुस्सऽस्सिणिभरणिजिट्ट रित्ताए । आसाढदुग विसाहा अणुराह पुणव्वसु महा य ।। ६४ ॥ पुन्नाइ कर धणिहा रोहिणि इअमयगऽवस्थनक्खत्ता । नंदिपइहापमुहे सुहकजे वजए मइमं । ६५ ॥ नंदा तिथि (१-६-११) को मूल, आर्द्रा, स्वाति चित्रा, आश्लेषा, शतभिषा, कृत्तिका या रेवती नक्षत्र हो, भर्दा तिथि ( २-७-१२) को पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, पूर्वाफाल्गुनी या उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र हो, जया तिथि ( ३-८-१३) को मृगशिर, श्रवण, पुष्य, अश्विनी, भरणी या ज्येष्ठा नक्षत्र हो, रिक्ता तिथि (४.६-१४) को पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, विशाखा, अणुराधा, पुनर्वसु या मघा नक्षत्र हो, पूर्णा तिथि (५-१०-१५ ) को हस्त, धनिष्ठा या रोहिणी नक्षत्र हो तो ये सब नक्षत्र मृतक अवस्थावाले कहे जाते हैं । इसलिये इनमें नंदी, प्रतिष्ठा आदि शुभ काय करना मतिमान् छोड़ दें ॥ ६३ से ६५ ॥ अशुभ योगों का परिहार कुयोगास्तिथिवारोत्था स्तिथिभोत्था भवारजाः । हूणबंगखशेष्वेव वास्त्रितयजास्तथा ॥ ६६ ॥ तिथि और वार के योग से, तिथि और नक्षत्र के योग से, नक्षत्र और वार के योग से तथा तिथि नक्षत्र और वार इन तीनों के योग से जो अशुभ योग होते हैं, वे सब हूण ( उडीसा ), बङ्ग ( बंगाल ) और खश ( नैपाल) देश में वर्जनीय हैं। अन्य देशों में वर्जनीय नहीं हैं ॥ ६६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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