Book Title: Vastusara Prakaran
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 249
________________ प्रतिष्ठादिक के मुहूर्त (२०१) कालमुखी योग चउरुत्तर पंचमघा कत्तिम नवमीइ तइम अणुराहा । भट्ठमि रोहिणि सहिमा कालमुही जोगि मास छगि मच ॥ ५६ ।। चौथ को तीनों उत्तरा, पंचमी को भघा, नवमी को कृत्तिका, तीज को अनुराधा और अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र हो तो काल मुखी नाम का योग होता है । इस योग में कार्य करनेवाले की छ: मास में मृत्यु होती है ॥ ५९॥ यमल और त्रिपुष्कर योग मंगल गुरु सणि भद्दा मिगचित्त धणिट्ठिा जमलजोगो। कित्ति पुण उ-फ विसाहा पू-भ उ-खाहिं तिपुक्करो ॥ ६०॥ मंगल, गुरु या शनिवार को भद्रा (२-७-१२) तिथि हो या मृगशिर, चित्रा या धनिष्ठा नक्षत्र हो तो यमल योग होता है । तथा उस वार को और उसी तिथि को कृत्तिका, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाभाद्रपदा या उत्तराषाढा नक्षत्र हो तो त्रिपुष्कर योग होता है ॥ ६० ॥ पंचक योग पंचग धणि? अद्वा मयकियवजिज जामदिसिगमणं । एसु तिसु सुहं असुहं विहिबंदु ति पण गुणं होह ॥ ६१ ॥ धनिष्ठा नक्षत्र के उत्तरार्द्ध से रेवती नक्षत्र तक (ध-श-पू-उ-रे) पांच नक्षत्र की पंचक संज्ञा है । इस योग में मृतक कार्य और दक्षिण दिशा में गमन नहीं करना चाहिये । उक्त तीनों योगों में जो शुभ या अशुभ कार्य किया जाय तो कम से दना, तीगुना और पंचगुना होता है ॥ ६१ ॥ अबला योग कृत्तिमपभिई चउरो सणि घुहि ससि सूर वार जुत्त कमा । पंचमि षिइ एगारसि बारसि भबला सुहे कज्जे ॥१२॥ कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर और आर्द्रा नक्षत्र के दिन क्रमशः शनि, बुध, सोम और रविवार हो तथा पंचमी, दूज, ग्यारस और बारस तिथि हो तो अबला नाम २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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