Book Title: Vastusara Prakaran
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 254
________________ ( २०६ ) वस्तुसारे प्रतिष्ठा विवाह आदि में नवमांश की प्राधान्यता है। कहा है कि लग्ने शुभेऽपि यद्यंशः क्रूरः स्यान्नेष्टसिद्धिदः । बग्ने क्रूरेऽपि सौम्यांशः शुभदोंऽशो बस्ती यतः ॥ ७७ ॥ लग्न शुभ होने पर भी यदि नवमांश क्रूर हो तो इष्टसिद्धि नहीं करता है । और लग्न कर होने पर भी नवमांश शुभ हो तो शुभकारक है, कारण कि अंश ही ५ बलवान् है । क्रूर अंश में रहा हुआ शुभ ग्रह भी क्रूर होता है और शुभ अंश में रहा हुआ क्रूर ग्रह शुभ होता है। इसलिये नवमांश की शुद्धि अवश्य देखना चाहिये ।। ७७ ।। Q प्रतिष्ठा में शुभाशुभ नवमांश शास्तु मिथुन: कन्या धन्याद्यार्द्ध च शोभनाः । प्रतिष्ठायां वृषः सिंहो वणिग् मीनश्च मध्यमाः ॥ ७८ ॥ प्रतिष्ठा में मिथुन, कन्या और धन का पूर्वार्द्ध इतने अंश उत्तम हैं । तथा वृष, सिंह, तुला और मीन इतने अंश मध्यम हैं ॥ ७८ ॥ द्वादशांश और त्रिंशांश का स्वरूप स्युर्द्वादशांशाः स्वगृहादपेशा- त्रिंशांशकेष्वोजयुजोस्तु राज्योः । क्रमोत्क्रमादर्थ-शरा-ष्ट-शैले-न्द्रियेषु भौमार्किगुरुज्ञशुक्राः ॥ ७६ ॥ प्रत्येक राशि में बारह २ द्वादशांश हैं । जिस नाम की राशि हो उसी राशि का प्रथम द्वादशांश और बाकी के ग्यारह द्वादशांश उसके पीछे की क्रमशः ग्यारह राशियों के नाम का जानना । इन द्वादशांशों के स्वामी राशियों के जो स्वामी हैं वे हीं हैं । प्रत्येक राशि में तीस त्रिंशांश हैं। इनमें मेष, मिथुन आदि विषम राशि के पांच, पांच, आठ, सात और पांच अंशों के स्वामी क्रम से मंगल, शनि, गुरु, बुध और शुक्र हैं । वृष आदि सम राशि के त्रिंशांश और उनके स्वामी भी उत्क्रम से जानमा, अर्थात् पांच, सात, आठ, पांच और पांच त्रिंशांशों के स्वामी क्रम से शुक्र, बुध, गुरु, शनि और मंगल हैं ॥ ७६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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