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वास्तुसारे - बलहीन ग्रहों का फल
बलहीनाः प्रतिष्ठाय रवीन्दुगुरुभार्गवाः ।
गृहेश-गृहिणी-सौख्य-स्वानि हन्युर्यथाक्रमम् ।। ६४ ।।
सूर्य बलहीन हो तो घर के स्वामी का, चंद्रमा बलहीन हो तो स्त्री का, गुरु बलहीन हो तो सुख का और शुक्र बलहीन हो तो धन का विनाश होता है ॥ ६४ ॥ प्रासाद विनाश कारक योग
तनु-बन्धु-सुत-घून-धर्मेषु तिमिरान्तकः ।।
सकर्मसु कुजार्की च संहरन्ति सुरालयम् ।। ६५ ।।
पहला, चौथा, पांचवाँ, सातवाँ या नववाँ इन पांचों में से किसी स्थान में सूर्य रहा हो तथा उक्त पांच स्थानों में या दसवें स्थान में मंगल या शनि रहा हो तो देवालय का विनाश कारक है ॥ १५ ॥ अशुभ ग्रहों का परिहार
सौम्यवाक्पतिशुक्राणां य एकोऽपि यलोस्कटः ।
रैरयुक्तः केन्द्रस्थः सद्योऽरिष्टं पिनष्टि सः । ६६ । बुध, गुरु और शुक्र इनमें से कोई एक भी बलवान हो, एवं इनके साथ कोई कर ग्रह न रहा हो और केन्द्र में रहे हों तो वे शीघ्र ही अरिष्ट योगों का नाश करते हैं ।। ६६ ॥
बलिष्ठः स्वोच्चगो दोषानशीतिं शीतरश्मिजः ।
वाक्पतिस्तु थतं हन्ति सहस्रं वा सुरार्चितः ॥ ६७ ॥
बलवान् होकर अपना उच्च स्थान में रहा हुआ बुध अस्सी दोषों का, गुरु मो दोषों का और शुक्र हजार दोषों का नाश करता ॥ ६७ ॥
बुधो विनार्केण चतुष्टयेषु, स्थितः शतं हन्ति विलग्नदोषान् ।
शुक्रः सहस्रं विमनोभवेषु, सर्वत्र गीर्वाणगुरुस्तु खक्षम् ॥६॥
सूर्य के साथ नहीं रहा हुआ बुध चार केन्द्र में से कोई केन्द्र में रहा हो तो लग्न के एक सौ दोषों का विनाश करता है । सूर्य के साथ नहीं रहा हुमा शुक्र
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