Book Title: Vastusara Prakaran
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 234
________________ (१८६) पास्तुलारे - - नाडी कूटज्येष्ठार्यम्णेशनीराधिपभयुगयुगं दास्रभं चैकनाडी, पुष्येन्दुस्वाष्ट्रमित्रान्तकवसुजलभं योनिबुध्न्ये च मध्या। वाय्वग्निव्यालविश्वोडुयुगयुगमथो पोष्णभं चापरा स्याद्, दम्पस्योरेकनाड्यां परिणयनमसन्मध्यनाड्यां हिमस्युः ॥३०॥ ज्येष्ठा, मूल, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, मार्दा, पुनर्वसु, शततारका, पूर्वाभाद्रपद और अश्विनी ये नव नक्षत्रों की आद्य नाडी है । पुष्य, मृगशिर, चित्रा, अनुराधा, भरणी, धनिष्ठा, पूर्वाषाढा, पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराभाद्रपद ये नव नक्षत्रों की मध्य नाडी है । स्वाति, विशाखा, कृत्तिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, उत्तराषाढा, श्रवण और रेवती ये नव नक्षत्रों की अन्त्य नाडी है। वर वधू का एक नाडी में विवाह होना अशुभ है और मध्य की एक नाडी में विवाह हो तो मृत्युकारक है ॥ ३० ॥ नाडी फल सुभमुहिसेवयसिस्सा घरपुरदेस मुह एगनाडीमा । कन्ना पुण परिणीधा हणइ पई ससुरं सासुं च ॥ ३१ ॥ एकनाडीस्थिता यत्र गुरुमन्त्रश्च देवताः । तत्र द्वेषं रुजं मृत्यु क्रमेण फलमादिशेत् । ३२ ॥ पुत्र, मित्र, सेवक, शिष्य, घर, पुर और देश ये एक नाडी में हों तो शुभ है। परन्तु कन्या का एक नाडी में विवाह किया जाय तो पति, श्वसुर और सासु का नाशकारक है। गुरु, मंत्र और देवता ये एक नाडी में हो तो शत्रुता, रोग और मृत्यु कारक हैं ॥ ३१ ॥ ३२॥ सारा बल जनिभान्नवकेषु त्रिषु जनिकर्माधानसञ्जिताः प्रथमाः । ताभ्यस्त्रिपञ्चसप्तमताराः स्युन हि शभाः क्वचन ॥ ३३ ॥ जन्म नक्षत्र या नाम नक्षत्र से आरम्भ करके नव २ की तीन लाइन करनी । इन तीनों में प्रथम २ ताराओं के नाम क्रम से जन्मतारा, कर्मतारा और आधानतारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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