Book Title: Vastusara Prakaran
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 235
________________ प्रतिष्ठादिक के मुहूर्त्त । ( १८७ ) जानना | इन तीनों नवकों में तीसरी, पांचवीं और सातवीं तारा कभी भी शुभ नहीं है ॥ ३३ ॥ तारा यंत्र जन्म १ कर्म १० आधान १६ संपत् २ विपत् ३ 35 ११ ,, २० Jain Education International " १२ २१ क्षेम ४ " د. १३ २२ यम ५ साधन ६ निधन ७ " १४ 93 २३ : "3 १५ ,, २४ " 23 १६ २५ For Private & Personal Use Only मंत्री 35 35 १७ २६ परम मैत्री 39 37 १८ इन ताराओं में प्रथम, दूसरी और आठवीं तारा मध्यम फलदायक हैं । तीसरी, पांचवीं और सातवीं तारा प्रथम हैं तथा चौथी, छट्ठी और नववीं तारा श्रेष्ठ हैं । कहा है कि २७ ऋक्षं न्यूनं तिथिर्न्यना क्षपानाथोऽपि चाष्टमः । तत्सर्वं शमयेत्तारा षट्चतुर्थनवस्थिताः ॥ ३४ ॥ नक्षत्र अशुभ हों, तिथि अशुभ हों और चंद्रमा भी आठवाँ अशुभ हो तो भी इन सब को छडी, चौथी और नववीं तारा हो तो दबा देती है || ३४ यात्रायुद्धविवाहेषु जन्मतारा न शोभना । शुभान्यशुभकार्येषु प्रवेशे च विशेषतः ॥ ३५ ॥ यात्रा, युद्ध और विवाह में जन्म की तारा अच्छी नहीं है, किंतु दूसरे शुभ कार्य में जन्म की तारा शुभ है और प्रवेश कार्य में तो विशेष करके शुभ है ॥ ३५ ॥ वर्ग बल अकचटतपय वर्गाः खगेशमार्जारसिंहशूनाम् । सर्पामृगावीनां निजपञ्चमवैरिणामष्टौ || ३६ || वर्ग, कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, यवर्ग और शवर्ग ये आठ वर्ग हैं, उनके स्वामी - वर्ग का गरुड़, कवर्ग का बिलाव, चवर्ग का सिंह, टवर्ग का www.jainelibrary.org

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