Book Title: Vastusara Prakaran
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 242
________________ - (११४) वास्तुसारे तिथि, वार और नक्षत्र के योग से शुभाशुभ योग होते हैं। उनमें प्रथम रविवार को शुभ योग बतलाते हैं भानौ भूत्यै करादित्य-पौष्णब्राह्ममृगोत्तराः । पुष्यमूलाश्विवासव्य-श्चैकाष्टनवमी तिथिः ॥ ४० ॥ रविवार को हस्त, पुनर्वसु, रेवती, मृगशीर, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा. उत्तराभाद्रपदा, पुष्य, मूल, अश्विनी और धनिष्ठा इन नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र तथा प्रतिपदा, अष्टमी और नवमी इन तिथियों में से कोई तिथि हो तो शुभ योग होता है। उनमें तिथि और बार या नक्षत्र और वार ऐसे दो २ का योग हो तो द्विक शुभ योग, एवं तिथि वार और नक्षत्र इन तीनों का योग हो तो त्रिक शुभ योग समझना । इसी प्रकार अशुभ योगों में भी समझना ॥ ४० ॥ रविवार को अशुभ योग न चार्के वारुणं याम्यं विशाखात्रितयं मघा । तिथिः षट्ससरुद्रार्क-मनुसंख्या तथेष्यते ॥ ४१ ॥ रविवार को शतभिषा, भरणी, विशाखा, अनुगधा, ज्येष्ठा और मघा इन नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र तथा छह, सातम, ग्यारस, बारस और चौदस इन तिथियों में से कोई तिथि हो तो अशुम योग होता है ।। ४१ ॥ सोमवार को शुभ योग सोमे सिद्धथै मृगब्राह्म-मैत्राण्यार्यमणं करः । श्रुतिः शतभिषक् पुष्य-स्तिथिस्तु दिनवाभिधा ॥ ४२ ॥ सोमवार को मृगशीर, रोहिणी, अनुराधा, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, श्रवण, शतभिषा और पुष्य इन नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र तथा दूज या नवमी तिथि हो तो शुभ योग होता है ॥ ४२ ॥ सोमवार को अशुभ योग न चन्द्रे वासवाषाढा-त्रयाद्रोश्विविदैवतम् । सिद्ध चित्रा च सप्तम्येकादश्यादित्रयं तथा ॥ ४३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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