Book Title: Vastusara Prakaran
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

Previous | Next

Page 233
________________ प्रतिष्ठादिक के मुहूर्त। (१५) राशिकूट विसमा भट्टमे पीई समाउ महमे रिज। सत्तु बट्टमं नामरासिहि परिवजए॥ बीयवारसम्मि बजे नवपंचमगं तहा। सेसेसु पीई निहिट्ठा जइ दुचागहमुत्तमा ॥ २७ ॥ विषम राशि (१-३-५-७-६-११) से आठवीं राशि के साथ मित्रता है, और समराशि (२-४-६-८-१०-१२) से आठवीं राशि के साथ शत्रुता है । एवं विषम राशि से छट्टी राशि के साथ शत्रुता है और समराशि से छही राशि मित्र है। इस प्रकार दूजी और बारावीं तथा नववीं और पांचवीं राशियों के स्वामी के साथ वापस में मित्रता न हो तो उनको भी अवश्य छोड़ना चाहिये । पाकी सप्तम से सप्तम राशि, तीसरी से ग्यारहवीं राशि और दशम चतुर्थ राशि शुभ है ॥ २७ ॥ कितनेक प्राचार्य गशिकूट का परिहार इस प्रकार बतलाते हैं नाडी योनिर्गणास्तारा चतुष्कं शुभदं यदि ।। तदौदास्येऽपि नाथानां भकूटं शुभदं मतम् ॥ २८ ॥ यदि नाडी, योनि, गण और तारा ये चारों ही शुभ हों तो राशियों के स्वामी का मध्यस्थपन होने पर भी राशिकूट शुभदायक माना ॥ २८ ॥ राशियों के स्वामी मेषादीशाः कुजः शुक्रो बुधश्चन्द्रो रविवुधः । शुक्रः कुजो गुरुर्मन्दो मन्दो जीव इति क्रमात् ॥ २६ ॥ मेषराशि का स्वामी मंगल, वृष का शुक्र, मिथुन का बुध, कर्क का चंद्रमा, सिंह का रवि, कन्या का बुध, तुला का शुक्र, वृश्चिक का मंगल, धन का गुरु, मकर का शनि, कुंभ का शनि और मिथुन का स्वामी गुरु है । इस प्रकार क्रम से बारह राशियों के स्वामी हैं ॥ २६ ॥ २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264