Book Title: Vastusara Prakaran
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 224
________________ प्रतिष्ठादिक के मुहूर्त । आरंभसिद्धि, दिनशुद्धि, लनशुद्धि. मुहूर्त चिन्तामणि, मुहूर्त मार्तण्ड, ज्योतिषरत्नमाला और ज्योतिष हीर इत्यादि ग्रंथों के आधार से नीचे के सब मुहूर्त लिखे गये हैं। संवत्सरादिक की शुद्धि संवत्सरस्य मासस्य दिनस्यक्षस्य सर्वथा । कुजवारोज्झिता शुद्धिः प्रतिष्ठायां विवाहवत् ॥१॥ सिंहस्थ गुरु के वर्ष को छोड़कर वर्ष, मास, दिन, नक्षत्र और मंगलवार को छोड़कर दूसरे वार, इन सब की शुद्धि जैसे विवाह कार्य में देखते हैं, उसी प्रकार प्रतिष्ठा कार्य में भी देखना चाहिये ॥१॥ अयन शुद्धि गृहप्रवेशत्रिदशप्रतिष्ठा-विवाहचूडाव्रतवन्धपूर्वम् । सौम्यायने कर्म शुभं विधेयं यद्गर्हितं तस्खलु दक्षिणे च ॥ २॥ गृह प्रवेश, देव की प्रतिष्ठा, विवाह, मुंडन संस्कार और यज्ञोपवितादि व्रत इत्यादि शुभकार्य उत्तरायण में सूर्य हो तप करना शुभ माना है और दक्षिण में सूर्य हो तब ये शुभ कार्य करना अशुभ माना है ॥ २ ॥ मास शुद्धि मिग्गसिराइ मासट्ठ चित्तपोसाहिए वि मुत्तु सुहा । जइ न मुरु सुको वा बालो वुडो अ अस्थमित्रो ॥ ३ । चैत्र, पौष और अधिक मास को छोड़कर मार्गशिर आदि आठ मास ( मार्गशिर, माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ ) शुभ हैं । परन्तु गुरु या शुक्र बाल, वृद्ध और अस्त नहीं होने चाहिये ॥ ३ ॥ मकर आदि छः राशि तक सूर्य उत्तरायण और कर्क प्रादि छः राशि तक सूर्य दक्षिणायन माना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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