Book Title: Vastusara Prakaran
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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(१७४)
वास्तुसारे ८ राहु का स्वरूप
ॐ नमो राहवे नैऋतदिगधीशाय कजलश्यामलाय श्यामवस्त्राय परशुहस्ताय सिंहवाहनाय च ।
नैर्ऋत्य दिशा के स्वामी, काजल जैसे श्याम वर्णले, श्याम वनवाले, हाथ में फरसा को धारण करनेवाले और सिंह की सवारी करनेवाले राहु को नमस्कार । - ९ केतु का स्वरूप
ॐ नमः केतवे राहुप्रतिच्छन्दाय श्यामानाय श्यामवस्त्राय पन्नगवाहनाय पन्नगहस्ताय च ।
राहु का प्रतिरूप श्याम वर्णवाले, श्याम वस्त्रगले, साँप की सबारीवाले और साँप को धारण करनेवाले केतु को नमस्कार ।
श्राचारदिनकर के मत से क्षेत्रपाल का स्वरूप ।
ॐ नमः क्षेत्रपालाय कृष्णगौरकाश्चन धूसरकपिलवर्णाय विंशतिभूजदण्डाय बबरकेशाय जटाजूटमण्डिताय वासुकोकृतजिनोपवीताय तत्तककृतमेखलाय शेषकृतहाराय नानायुधहस्ताय सिंहचर्मावरणाय प्रेतासनाय कुक्कुरवाहनाय त्रिलोचनाय च ।
कृष्ण, गौर, सुवर्ण, पांडु और भरे वर्णवाले, बीस भुजावाले, बर्बर केशवाले, बड़ी जटावाले, वासुकी नाग की जनेऊवाले, तक्षकनाग की मेखल्लावाले, शेषनाग के हारवाले, अनेक प्रकार के शस्त्र को हाथ में धारण करनेवाले, सिंह के चर्म को धारण करनेवाले, प्रेत के आसनवाले, कुत्ते की सवारीवाले और तीन नेत्रवाले ऐसे क्षेत्रपाल को नमस्कार ।
निर्वाणकलिका के मत से इस प्रकार मतान्तर है
राहु अर्द्धकाय से रहित और दोनों हाथ अर्घ मुदावाने माना है। केतु हाथ में अक्षसूत्र और कुंडिका धारण करनेवाले माना है ।
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