Book Title: Vastusara Prakaran
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 230
________________ (१८२ ) वास्तुसारे सिद्ध होता है। रवि, सोम, बुध और शुक्र ये चार ग्रहों की तो सातवें स्थान पर ही पूर्ण दृष्टि होने से दूसरे कोई भी स्थान को पूर्ण दृष्टि से नहीं देखते हैं। प्रतिष्ठा के नक्षत्र मह मिसिर हत्थुत्तर अणुराहा रेबई सवण मूलं । पुस्स पुणव्वसु रोहिणि साइ धपिट्ठा पट्टाए ॥ १८ ॥ मघा, मृगशीर, हस्त, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपदा, अनुराधा, रेवती, श्रवण, मूल, पुष्य, पुनर्वसु, रोहिणी, स्वाति और धनिष्ठा ये नक्षत्र प्रतिष्ठा कार्य में शुभ हैं ॥ १८॥ शिलान्यास और सूत्रपात के नक्षत्र चेहमसुभं धुवमिउ कर पुस्स पणि? सयभिसा साई। पुस्स तिउत्तर रे रो कर मिग सवणे सिलनिवेसो ॥ १६ ॥ ध्रुवसंज्ञक ( उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपदा और रोहिणी ), मृदुसंज्ञक (मृगशीर, रेवती, चित्रा और अनुराधा), हस्त, पुष्य, धनिष्ठा, शतभिषा और स्वाति इन नक्षत्रों में चैत्य ( मन्दिर) का सूत्रपात करना अच्छा है। तथा पुष्य, तीनों उत्तरानक्षत्र, रेवती, रोहिणी, हस्त, मृगशीर और श्रवण इन नक्षत्रों में शिला का स्थापन करना अच्छा है ॥ १६ ॥ प्रतिष्ठाकारक के अशुभ नक्षत्र कारावयस्स जन्मरिक्खं दस सोलसं तह द्वारं । तेवीसं पंचवीसं विपाटाइ वजिजा ॥ २० ॥ बिम्ब प्रतिष्ठा करनेवाले को अपना जन्मनक्षत्र, दसवाँ, सोलहवाँ, अठारहवा, तेवीसवाँ और पचीसवाँ ये नक्षत्र बिम्ब प्रतिष्ठा में छोड़ना चाहिये ॥ २० ॥ बिम्ब प्रवेश नक्षत्र सयभिसपुस्स पणिहा मिगसिर धुवमिउ भएहिं सुहवारे । ससि गुरुसिए उहए गिहे पवेसिन परिमामो ॥ २१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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