Book Title: Vastusara Prakaran
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 199
________________ जिनेश्वरदेव और उनके शासनदेवों का स्वरूप - उन्नीसवें मल्लिजिन और उनके यक्ष यक्षिणी का स्वरूप तथैकोनविंशतितममल्लिनाथ प्रियङ्गुवर्ण कलशलाञ्छनं अश्विनीनक्षत्रजातं मेषराशिं चेति । तत्तीयों स्पन्नं कुबेरयक्षं चतुर्मुखमिन्द्रायुधवणे गरुडवदनं गजवाहनं अष्टभुजं वरदपरशुशूलाभययुक्तदक्षिणपाणिं बीजपूरकशक्तिमुद्गराक्षसूत्रयुक्तवामपाणिं चेति । तस्मिन्नेव तीर्थो समुत्पन्नां वैरोट्यां देवी कृष्णवर्णा पद्मासनां चतुर्भुजां वरदाक्षसूत्रयुक्तदक्षिणकरां मातुलिंगशक्तियुतवामहस्तां चेति ॥ १६ ॥ - मल्लिनाथ नामके उन्नीसवें तीर्थंकर हैं, ये प्रियंगु ( हरे ) वर्णवाले, कलश के लाञ्छनवाले, जन्मनक्षत्र, अश्विनी और मेष राशिवाले हैं। उनके तीर्थ में 'कुबेर' नामका यक्ष चार मुखवाला, इंद्र के आयुध के वर्णवाला ( पंचरंगी ), गरुड़ के जैसा मुखवाला, हाथी की सवारी करनेवाला, माठ भुजा वाला, दाहिनी भुजाओं में वरदान, फरसा, शूल और अभय को; बाँयीं भुजाओं में बीजोरा, शक्ति, मुद्गर और माला को धारण करनेवाला है । ___उन्हीं के तीर्थ में 'वैरोट्या' नामकी देवी कृष्ण वर्णवाली, कमल के वाहन वाली, चार भुजा वाली, दाहिने भुजाओं वरदान और माला; बाँयीं भुजाओं में बीजोरा और शक्ति को धारण करनेवाली है ॥ १६ ॥ बीस मुनिसुव्रतजिन और उनके यक्ष यक्षिणी का स्वरूप. तथा विंशतितमं मुनिसुव्रतं कृष्णवर्ण कूर्मलाञ्छनं श्रवणजातं मकरराशिं चेति । तत्तीर्थोत्पन्नं वरुणयक्षं चतुर्मुखं त्रिनेत्रं धवलवर्ण वृषभवाहनं जटामुकुटमण्डितं अष्टभुजं मातुलिंगगदावाणशक्तियुतदक्षिणपाणिं नकुलकपद्मधनुःपरशुयतवामपाणिं चेति । तस्मिन्नेव तीर्थे समुत्पन्नां नरदत्तां देवी गौरवर्णा भद्रासनारूढां चतुभुजां वरदाक्षसूत्रयुतदक्षिणकरां बीजपूरकशूलयुतवामहस्तां चेति ॥ २० ॥ मुनिसुव्रतजिन नामके बीसवें तीर्थकर हैं, ये कृष्ण वर्णवाले, कछुए के लांछनवाले, जन्म नक्षत्र श्रवण और मकर राशिवाले हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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